रांची: झारखंड की एक महिला एडिशनल डिस्ट्रिक्ट जज (ADJ) ने अपने तबादले और छुट्टी अस्वीकृति को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। याचिका में उन्होंने कहा है कि उन्होंने अपने बच्चे की देखभाल के लिए 10 जून 2025 से दिसंबर 2025 तक चाइल्ड केयर लीव (CCL) मांगी थी, लेकिन संबंधित प्रशासनिक अधिकारियों ने उनका अवकाश आवेदन अस्वीकार कर दिया और बिना ठोस कारण बताए उनका स्थानांतरण कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट की बेंच, जिसमें मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति ए.जी. मसीह शामिल हैं, ने मामले की सुनवाई के लिए 29 मई 2025 की तारीख तय की है। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने स्पष्ट रूप से छुट्टी अस्वीकृति का कारण जानना चाहा, लेकिन याचिकाकर्ता ने बताया कि उन्हें कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया।
चाइल्ड केयर लीव नियम: सरकारी कर्मचारियों के अधिकार
भारत सरकार के सेवा नियमों के अनुसार, महिला कर्मचारियों को बच्चों की देखभाल के लिए विशेष अवकाश का अधिकार दिया गया है। यह प्रावधान न्यायिक अधिकारियों समेत अन्य सरकारी कर्मचारियों पर भी लागू होता है।
चाइल्ड केयर लीव (CCL) के मुख्य प्रावधान
- दो बच्चों तक के लिए अधिकतम 730 दिन की छुट्टी मिल सकती है।
- यह छुट्टी बच्चों के 18 वर्ष की उम्र तक मान्य होती है।
- अवकाश का कारण बच्चों की बीमारी, परीक्षा, स्कूल गतिविधि या देखभाल हो सकता है।
- प्रारंभिक 365 दिनों की छुट्टी में पूर्ण वेतन, जबकि शेष 365 दिन में 80% वेतन मिलता है।
- छुट्टी को चरणों में लिया जा सकता है और मंजूरी संबंधित प्रशासनिक अधिकारी के विवेक पर निर्भर करती है।
न्यायिक अधिकारियों के लिए छुट्टी नियमों की प्रक्रिया
झारखंड जैसी राज्यों की न्यायिक सेवाओं में कार्यरत अधिकारियों पर राष्ट्रीय न्यायिक सेवा आयोग अथवा राज्य न्यायिक सेवा नियमों के तहत छुट्टी संबंधी प्रावधान लागू होते हैं। महिला न्यायिक अधिकारियों को मातृत्व अवकाश के साथ-साथ चाइल्ड केयर लीव का भी अधिकार है, परंतु इस छुट्टी को स्वीकृति देना संबंधित उच्च प्रशासनिक प्राधिकरण के अधिकार क्षेत्र में आता है।
महिला कर्मचारियों के अधिकार और न्यायिक सेवा में समावेशन का मुद्दा
झारखंड की महिला एडीजे का यह मामला सिर्फ एक स्थानांतरण या छुट्टी विवाद नहीं है, बल्कि यह न्यायिक सेवा में कार्यरत महिला अधिकारियों की चुनौतियों को रेखांकित करता है। पारिवारिक जिम्मेदारियों और न्यायिक दायित्वों के बीच संतुलन बनाना कई बार मुश्किल हो जाता है, और ऐसे मामलों में चाइल्ड केयर लीव जैसे अधिकारों की व्यावहारिक उपयोगिता पर प्रश्न खड़े होते हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि न्यायिक सेवा में महिलाएं बिना भेदभाव के काम कर सकें और उन्हें परिवार के प्रति दायित्वों को निभाने का पर्याप्त अवसर मिले, तो यह पूरे न्याय तंत्र को अधिक संवेदनशील और संतुलित बना सकता है। सुप्रीम कोर्ट का यह मामला ऐसे ही अधिकारों की व्याख्या और पुनर्समीक्षा की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में देखा जा रहा है।
ट्रेंड में क्यों है झारखंड की महिला एडीजे का मामला?
- SC Hearing on CCL Denial: सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए मामले को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया।
- Women in Judiciary: यह मामला न्यायिक सेवा में महिलाओं के अधिकारों और संतुलन की आवश्यकता को उजागर करता है।
- Policy Reassessment Signal: यह प्रकरण सरकारी कर्मचारियों के अवकाश नियमों की समीक्षा की आवश्यकता को दर्शाता है।