रांची: भाजपा के पूर्व विधायक भानु प्रताप शाही के खिलाफ चल रहे मनी लांड्रिंग मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने बीते 10 वर्षों में अब तक केवल 15 गवाहों को ही अदालत में पेश किया है। यह संख्या ईडी द्वारा प्रस्तुत किए जाने वाले कुल गवाहों का लगभग 50 प्रतिशत मानी जा रही है।

मनी लांड्रिंग केस में धीमी ट्रायल प्रक्रिया

अदालत में उपलब्ध जानकारी के अनुसार, यदि गवाह पेश करने की यही गति रही तो इस मामले में अंतिम निर्णय आने में 40 से 45 साल तक का समय लग सकता है। जबकि सुप्रीम कोर्ट पहले ही कई बार यह निर्देश दे चुका है कि राजनीतिज्ञों के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों का निपटारा जल्द से जल्द होना चाहिए।

मधु कोड़ा सरकार के दौर से जुड़ा मामला

यह मामला झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा के कार्यकाल (2006-2008) से जुड़ा है। उस दौरान हुए कथित भ्रष्टाचार और अवैध खनन घोटाले में तीन मंत्रियों के खिलाफ न्यायिक प्रक्रिया चल रही है, जिनमें भानु प्रताप शाही भी शामिल हैं।

भानु प्रताप शाही का राजनीतिक सफर

भानु प्रताप शाही ने 2005 में ऑल इंडिया फारवर्ड ब्लॉक के टिकट पर पहली बार विधानसभा चुनाव जीता था। मधु कोड़ा सरकार में वे कैबिनेट मंत्री भी रहे। उसी अवधि में उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे। बाद में वे भाजपा से जुड़ गए और 2019 में भवनाथपुर सीट से भाजपा के टिकट पर विधायक बने। हालांकि, 2024 विधानसभा चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा।

केस की धीमी सुनवाई पर उठे सवाल

कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि ईडी की धीमी कार्रवाई और गवाहों की संख्या सीमित रहने से केस का निपटारा लंबे समय तक लटक सकता है। यह मामला न सिर्फ झारखंड बल्कि देशभर में राजनीतिक व्यक्तित्वों से जुड़े आपराधिक मामलों की धीमी सुनवाई पर सवाल खड़ा करता है।

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