रांची : झारखंड की राजधानी रांची सहित कई जिलों में बुधवार को आदिवासी संगठनों द्वारा आयोजित झारखंड बंद का खासा असर देखा गया। डोरंडा-सिरमटोली फ्लाईओवर रैंप निर्माण के विरोध में तथा आदिवासी अधिकारों की रक्षा की मांग को लेकर यह बंद बुलाया गया, जिसमें आदिवासी बचाओ मोर्चा सहित अन्य संगठनों ने हिस्सा लिया।
सुबह से ही रांची के कांके, हरमू, रातू रोड, टाटीसिलवे जैसे इलाकों में टायर जलाकर सड़कें जाम की गईं। सड़कों पर बैनर और झंडों के साथ प्रदर्शन करते हुए आदिवासी कार्यकर्ताओं ने सरकार विरोधी नारे लगाए। इससे रांची में आवागमन पर गहरा प्रभाव पड़ा और कई मार्गों पर यातायात ठप रहा।
सिमडेगा, लोहरदगा, गुमला समेत अन्य जिलों में भी बंद का प्रभाव
झारखंड बंद 2025 का असर सिर्फ रांची तक सीमित नहीं रहा। सिमडेगा, लोहरदगा, गुमला, चाईबासा और खूंटी जैसे जिलों में भी प्रदर्शनकारियों ने सड़कें जाम कीं। सिमडेगा के झूलन सिंह चौक पर NH-143 को जाम कर दिया गया, जहां आदिवासी नेताओं ने डोरंडा फ्लाईओवर योजना, नई शराब नीति और आदिवासी ज़मीनों की अवैध खरीद पर जोरदार विरोध दर्ज कराया।
मांगों के केंद्र में डोरंडा फ्लाईओवर रैंप, सरना धर्म और पेसा कानून
झारखंड में आदिवासी आंदोलन की यह बंदी सिर्फ एक निर्माण परियोजना के विरोध तक सीमित नहीं है। आंदोलन की प्रमुख मांगों में शामिल हैं:
- डोरंडा-सिरमटोली फ्लाईओवर रैंप का निर्माण रद्द किया जाए क्योंकि इससे धार्मिक स्थलों का संतुलन प्रभावित हो सकता है।
- पेसा कानून 1996 की नियमावली को अविलंब झारखंड में लागू किया जाए।
- सरना धर्म को जनगणना 2025 में अलग धर्म कोड के रूप में मान्यता दी जाए।
- खड़िया भाषा के लिए प्लस टू विद्यालयों में शिक्षक नियुक्ति और पद सृजन किया जाए।
- नई शराब नीति को रद्द करने की मांग।
- लैंड बैंक नीति को समाप्त किया जाए।
- आदिवासी ज़मीनों की अवैध खरीद-बिक्री और सादा पट्टा पर रोक लगाई जाए।
मशाल जुलूस के साथ आंदोलन को दी गई धार
बंद से एक दिन पहले मंगलवार की शाम रांची में आदिवासी संगठनों ने एक मशाल जुलूस निकाला था। इस जुलूस में बड़ी संख्या में युवा, महिलाएं और बुजुर्ग शामिल हुए। जुलूस के माध्यम से सरकार को यह संदेश दिया गया कि अगर मांगें नहीं मानी गईं तो आंदोलन और तेज़ होगा।
रांची की यातायात व्यवस्था पर पड़ा असर
बंद का सीधा असर राजधानी रांची की यातायात व्यवस्था पर देखने को मिला। स्कूल बसें समय पर नहीं पहुंच सकीं, कार्यालयों में कर्मचारियों की उपस्थिति प्रभावित हुई, और कई व्यवसायिक प्रतिष्ठान बंद रहे। सुरक्षा व्यवस्था बनाए रखने के लिए पुलिस बल की तैनाती की गई, विशेष रूप से डोरंडा, अल्बर्ट एक्का चौक और बिरसा चौक जैसे संवेदनशील इलाकों में।
आंदोलन की आवाज़ और सरकार से अपील
आदिवासी संगठनों ने सरकार से संवेदनशील और ठोस पहल की मांग की है। उनका कहना है कि ये मांगें केवल अधिकार नहीं, बल्कि झारखंड की अस्मिता, संस्कृति और पहचान से जुड़ी हुई हैं। प्रदर्शनकारियों ने चेतावनी दी है कि यदि सरकार जल्द समाधान नहीं निकालती, तो यह आंदोलन और व्यापक रूप ले सकता है।