निरीक्षण में उजागर हुई आपातकालीन सेवाओं की खामियां

रांची: राज्य के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल राजेंद्र आयुर्विज्ञान संस्थान (RIMS) की आपातकालीन चिकित्सा सेवाओं की स्थिति चिंताजनक पाई गई है। हाईकोर्ट के वकीलों की एक टीम ने हाल ही में रिम्स के ट्रॉमा सेंटर और सेंट्रल इमरजेंसी का निरीक्षण किया, जिसमें कई गंभीर कमियां उजागर हुईं। रिपोर्ट में सामने आया कि मरीजों के बेड के पास लगाए गए दर्जनों मॉनिटर्स कनेक्ट ही नहीं हैं, जिसके कारण बीपी, पल्स और ऑक्सीजन स्तर की रीयल-टाइम मॉनिटरिंग संभव नहीं हो पा रही है।

जरूरी दवाओं और संसाधनों की कमी

निरीक्षण में यह भी पाया गया कि ट्रॉमा सेंटर में बुनियादी दवाओं की भारी कमी है। मरीजों को आवश्यक दवाएं अस्पताल से उपलब्ध नहीं हो रही हैं, जिससे परिजनों को बाहर से दवाएं खरीदनी पड़ रही हैं। डॉक्टर दवाओं के लिए कागज की पर्ची पर प्रिस्क्रिप्शन दे रहे हैं, जबकि अस्पताल की पॉलिसी के अनुसार हॉस्पिटल पर्ची पर ही दवा लिखी जानी चाहिए। इस लापरवाही के कारण गंभीर मरीजों के इलाज में अनावश्यक देरी हो रही है।

टेस्ट रिपोर्ट में लंबा इंतजार

रिपोर्ट के अनुसार, ABG टेस्ट (Arterial Blood Gas Test) जैसी अहम जांचों के लिए भी मरीजों को लंबे समय तक इंतजार करना पड़ता है। कई मामलों में सुबह सैंपल देने के बाद शाम में रिपोर्ट दी जाती है, जो आपातकालीन परिस्थितियों में मरीज की जान के लिए खतरा बन सकती है।

बेड की संख्या को लेकर भ्रम

निरीक्षण के दौरान बेड उपलब्धता पर भी अस्पष्ट जानकारी सामने आई। क्रिटिकल केयर प्रभारी ने 110 बेड होने का दावा किया, जबकि नर्सिंग स्टाफ ने बताया कि सिर्फ 84 बेड ही कार्यरत हैं। इस विरोधाभास ने अस्पताल प्रशासन की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

हाईकोर्ट में होगी सुनवाई

टीम ने अपनी रिपोर्ट में उल्लेख किया है कि रिम्स की मौजूदा स्थिति आपातकालीन सेवा की अवधारणा के विपरीत है और यह मरीजों के अधिकारों व जीवन रक्षा के संवैधानिक दायित्व का उल्लंघन है। हाईकोर्ट ने इस मामले में सख्त रुख अपनाते हुए 11 अगस्त तक रिम्स को एफिडेविट दाखिल करने और 12 अगस्त को सुनवाई करने का निर्देश दिया है।

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