सरायकेला: सरायकेला विधानसभा सीट झारखंड की राजनीति का एक अहम केंद्र है। यहां भाजपा के चंपई सोरेन और झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के गणेश महली के बीच कांटे की टक्कर है। पहले भी इन दोनों नेताओं का मुकाबला हो चुका है, लेकिन इस बार सियासी समीकरण पूरी तरह बदल गया है। आइए जानते हैं सरायकेला के राजनीतिक परिदृश्य और जातीय गणित को विस्तार से।
चंपई सोरेन: कोल्हान का राजनीतिक दिग्गज
चंपई सोरेन झारखंड की राजनीति का एक बड़ा नाम हैं।
- छह बार विधायक चुने गए: सरायकेला के आदिवासी समाज में उनकी पकड़ जबरदस्त है।
- कोल्हान टाइगर का खिताब: शिबू सोरेन के भरोसेमंद साथियों में शुमार रहे चंपई ने झामुमो को मजबूत बनाने में अहम भूमिका निभाई थी।
- 2024 में बड़ा बदलाव: इस बार चंपई सोरेन ने झामुमो छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया, जिससे सियासी समीकरण बदल गया।
चंपई के भाजपा में शामिल होने से पार्टी को उम्मीद है कि उनके अनुभव और प्रभाव से आदिवासी वोट बैंक में सेंध लगाई जा सकेगी।
गणेश महली: झामुमो की नई उम्मीद
गणेश महली, जो पहले भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ चुके हैं, अब झामुमो का चेहरा हैं।
- दो बार विधानसभा चुनाव लड़ा:
- 2014: महज 1000 वोटों से हार।
- 2019: हार का अंतर 16,000 तक पहुंचा।
- 2024 की चुनौती: झामुमो का तीर-धनुष सिंबल और महली की नई पहचान पार्टी के लिए अहम साबित हो सकती है।
गणेश महली के झामुमो में शामिल होने से पार्टी ने सरायकेला में एक नया समीकरण तैयार किया है।
सरायकेला का जातीय समीकरण: कौन है मजबूत?
सरायकेला सीट अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षित है।
- 34% आदिवासी वोटर:
- आदिवासी वोटरों का झुकाव परंपरागत रूप से झामुमो की ओर रहा है।
- ओबीसी वोटर:
- भाजपा का मजबूत वोट बैंक, जो हर चुनाव में पार्टी के पक्ष में खड़ा रहता है।
क्या बदलेगा जातीय गणित?
- भाजपा को फायदा:
- चंपई सोरेन के भाजपा में शामिल होने से पार्टी को कुछ आदिवासी वोट मिलने की संभावना है।
- झामुमो के लिए चुनौती:
- अगर आदिवासी वोटरों में बिखराव हुआ, तो यह झामुमो के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है।
लोकसभा बनाम विधानसभा: अलग है समीकरण
सरायकेला विधानसभा सीट सिंहभूम लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है।
- 2024 लोकसभा चुनाव:
- 2024 के लोकसभा चुनाव में जेएमएम की जोबा मांझी 168402 मतों के अंतर से जीत दर्ज की थी।
- विधानसभा चुनाव:
- मुद्दे और रणनीतियां अलग होती हैं, इसलिए दोनों चुनावों के नतीजों में बड़ा अंतर हो सकता है।
भाजपा के पास अपने परंपरागत वोटरों को जोड़ने का मौका है, जबकि झामुमो को आदिवासी वोट बैंक को संभालने की चुनौती का सामना करना होगा।
ईवीएम का फैसला: किसकी होगी जीत?
23 नवंबर को ईवीएम खुलने के साथ ही यह तय हो जाएगा कि सरायकेला की सियासी जंग में किसकी जीत होती है।
- भाजपा:
- चंपई सोरेन के साथ होने से भाजपा का खाता खोलने की उम्मीद।
- झामुमो:
- परंपरागत वोट बैंक को बनाए रखना झामुमो के लिए सबसे बड़ी चुनौती।
क्या हो सकते हैं नतीजे?
इस बार सरायकेला का चुनावी रण बेहद दिलचस्प है।
- चंपई सोरेन: भाजपा के लिए नए रास्ते खोल सकते हैं।
- गणेश महली: झामुमो के गढ़ को बचाने के लिए संघर्षरत हैं।
यह मुकाबला न सिर्फ इन दो नेताओं का, बल्कि झारखंड की राजनीति के भविष्य का भी फैसला करेगा।
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