नेमरा गांव में दिशोम गुरु शिबू सोरेन के निधन पर शोक की लहर

रांची, झारखण्ड: झारखंड आंदोलन के अग्रदूत और झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के संस्थापक दिशोम गुरु शिबू सोरेन के निधन की खबर जैसे ही रामगढ़ जिले के नेमरा गांव पहुंची, पूरा गांव शोक में डूब गया। सोमवार सुबह दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में उनके निधन की सूचना से नेमरा गांव में गमगीन माहौल छा गया। गांव की गलियों में सन्नाटा पसर गया और किसी भी घर में चूल्हा नहीं जला। ग्रामीणों ने अपने दैनिक कार्य स्थगित कर दिए और दिवंगत नेता के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित की।

Shibu Soren Death: गांववासियों ने जताया गहरा शोक

नेमरा गांव के बुजुर्गों और युवाओं ने कहा कि शिबू सोरेन न सिर्फ एक नेता थे, बल्कि इस गांव के अभिभावक और प्रेरणास्रोत भी थे। वे अक्सर गांव आया करते थे और ग्रामीणों के साथ आत्मीय संबंध बनाए रखते थे। उनके निधन से गांव ने न सिर्फ एक महान नेता, बल्कि एक संरक्षक खो दिया है। कुछ ग्रामीणों ने बताया कि वे 1957 में अपने पिता सोबरन मांझी की हत्या के बाद जिस विद्रोह की राह पर चले थे, उसकी पहली लपट नेमरा से ही उठी थी।

Shibu Soren Family: अंतिम क्षणों में हेमंत और कल्पना सोरेन रहे साथ

दिशोम गुरु शिबू सोरेन बीते कुछ समय से बीमार चल रहे थे। दिल्ली स्थित सर गंगा राम अस्पताल में इलाज के दौरान उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके अंतिम क्षणों में झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और उनकी बहू कल्पना सोरेन उनके साथ मौजूद थे। शोकाकुल मुख्यमंत्री की आंखें भर आईं, जबकि कल्पना सोरेन अपने आंसू नहीं रोक सकीं।

Shibu Soren Political Journey: राजनीति से धीरे-धीरे बनाई दूरी

पिछले कुछ वर्षों से शिबू सोरेन ने स्वास्थ्य कारणों से सक्रिय राजनीति से धीरे-धीरे दूरी बना ली थी। वे सार्वजनिक कार्यक्रमों में कम दिखाई देते थे और झारखंड की राजनीति में नई पीढ़ी को मार्गदर्शन देते हुए पृष्ठभूमि में चले गए थे। हालांकि, उनकी राजनीतिक विरासत और आदिवासी हितों के लिए उठाई गई आवाज आज भी झारखंड की राजनीति की दिशा तय करती है।

Shibu Soren Legacy: आदिवासी अस्मिता और झारखंड आंदोलन के प्रतीक

शिबू सोरेन का जाना न केवल एक राजनीतिक युग का अंत है, बल्कि आदिवासी समाज की आवाज को कमजोर करने वाला एक क्षण भी है। जल, जंगल और जमीन के अधिकार के लिए लड़ते हुए उन्होंने आदिवासी अस्मिता की पहचान को राष्ट्रीय मंच तक पहुंचाया। नेमरा गांव से उठी यह आवाज आज भी झारखंड की आत्मा में जीवित है।

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