झारखंड के राज्यपाल संतोष कुमार गंगवार हाल ही में ट्रेनों की लेटलतीफी का शिकार हो गए। 2 जून को वे 13288 दक्षिण बिहार एक्सप्रेस से पटना से टाटानगर की ओर रवाना हुए थे। हालांकि यह ट्रेन पहले से ही निर्धारित समय से लगभग 54 मिनट की देरी से टाटा पहुंची, लेकिन सबसे ज्यादा चौंकाने वाला पहलू यह रहा कि चांडिल से टाटानगर (35 किलोमीटर) की दूरी तय करने में ट्रेन को करीब दो घंटे का समय लग गया।
राज्यपाल की यात्रा और ट्रेन देरी की गंभीरता
राज्यपाल गंगवार को 3 जून को जमशेदपुर स्थित अरका जैन विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में शामिल होना था। इस लिहाज़ से यात्रा का समय महत्वपूर्ण था। हालांकि देरी के कारण उनका कार्यक्रम प्रभावित नहीं हुआ, लेकिन यह घटना यह दर्शाती है कि रेलवे की समयबद्धता का हाल कितना चिंताजनक हो गया है|
सोशल मीडिया पर भड़का आक्रोश, रेलवे पर उठे सवाल
इस घटना को लेकर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर नाराजगी देखने को मिली। ‘झारखंड रेल यूजर’ नामक ट्विटर हैंडल से की गई पोस्ट ने रेलवे अधिकारियों, रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव, राज्यपाल, और मुख्यमंत्री को टैग करते हुए तीखा सवाल पूछा।
पोस्ट में लिखा गया:
“जब VIP भी इस लापरवाही का शिकार हो रहे हैं, तो आम जनता की हालत का अंदाज़ा लगाना मुश्किल है।”
ट्रेनों की लेटलतीफी: आम यात्रियों के लिए रोजमर्रा की परेशानी
इस घटना ने एक बार फिर भारत में ट्रेन लेटलतीफी की राष्ट्रीय समस्या को उजागर कर दिया है। झारखंड और बिहार जैसे राज्यों में अक्सर यात्रियों को रेल सेवाओं की अनियमितता का सामना करना पड़ता है। चांडिल से टाटानगर रेलवे सेक्शन में यह देरी अब आम बात होती जा रही है।
रेलवे प्रशासन की लापरवाही या सिस्टम की खामी?
वर्तमान में रेलवे मंत्रालय द्वारा ट्रेनों की रनिंग स्टेटस ट्रैकिंग और इलेक्ट्रॉनिक सिग्नलिंग सिस्टम को मजबूत करने के प्रयास चल रहे हैं, लेकिन झारखंड में ट्रेनों की अनियमितता यह संकेत देती है कि ग्राउंड लेवल पर सुधार अभी भी अधूरा है।
आम नागरिकों की ओर से यह मांग लगातार उठ रही है कि रेलवे समयबद्धता सुनिश्चित करे, विशेष रूप से रांची, जमशेदपुर, धनबाद जैसे व्यस्त मार्गों पर।
टाटानगर रेलवे स्टेशन की स्थिति और यात्री असंतोष
टाटानगर जंक्शन, झारखंड का प्रमुख स्टेशन होने के बावजूद बुनियादी सुविधाओं और ट्रेनों की समयबद्धता के लिहाज से बार-बार आलोचना का शिकार होता है। यात्रियों के अनुसार, चांडिल से टाटा के बीच अक्सर ट्रेनों को लंबे समय तक रोका जाता है, जिससे यात्रियों को भारी असुविधा होती है।
VIP यात्रा में भी देरी: रेलवे पर विश्वास की गिरती साख
जब एक राज्यपाल जैसी विशिष्ट हस्ती की यात्रा में भी रेलवे समय का पालन नहीं कर पा रहा, तो आम नागरिकों के लिए स्थिति और भी चिंताजनक हो जाती है। इस प्रकरण ने रेलवे के प्रति जन विश्वास को कमजोर किया है।
रेलवे बोर्ड और दक्षिण पूर्व रेलवे ज़ोन को इस पर शीघ्र संज्ञान लेने की आवश्यकता है, ताकि रेल सेवाओं की विश्वसनीयता बनी रहे और यात्रियों को परेशानी से राहत मिल सके।