Ranchi: झारखंड के पूर्व डीजीपी अनुराग गुप्ता के पद से हटाये जाने पर नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी ने मुख्यमंत्री पर देर से कार्रवाई करने का आरोप लगाया और कहा कि आखिरकार सरकार उनके सुझाव पर अमल करने को मजबूर हुई। मरांडी ने अनुराग गुप्ता की नियुक्ति एवं कार्यकाल को संवैधानिक और प्रशासनिक दृष्टि से विवादित बताया और राज्य प्रशासन में पारदर्शिता तथा जवाबदेही की मांग दोहराई।
DGP अनुराग गुप्ता हटाए जाने पर नेता प्रतिपक्ष की तीखी प्रतिक्रिया
बाबूलाल मरांडी ने कहा कि अनुराग गुप्ता की नियुक्ति “अवैधानिक और विवादास्पद” रही और विपक्ष पहले भी लगातार इस विषय पर चेतावनी दे चुका है। उन्होंने कहा कि उन्होंने बार-बार सरकार को इस पर शीघ्र कार्रवाई के लिए आगाह किया था, लेकिन शासन ने देर से ही कदम उठाया। मरांडी ने मुख्यमंत्री के फैसले का स्वागत करते हुए यह भी कहा कि यह कार्रवाई बहुत देरी से हुई।
बाबूलाल का आरोप: सरकार ने देर से सुझाव पर अमल किया
मरांडी ने वरिष्ठ पदाधिकारियों और सरकार की नीतियों पर कटाक्ष करते हुए कहा कि यदि समय पर कार्रवाई नहीं होती तो राज्य को और समस्याओं का सामना करना पड़ सकता था। उन्होंने सरकार को सलाह भी दी कि अनुचित नियुक्तियों और विवादित अधिकारियों के संदिग्ध नेटवर्क पर त्वरित और पारदर्शी जांच होनी चाहिए।
संवैधानिक और प्रशासनिक प्रश्न—विपक्ष ने क्या कहा
नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि डीजीपी जैसी संवेदनशील पोस्ट पर नियुक्ति और उसकी वैधता के प्रश्न कानून और संवैधानिक प्रावधानों के तहत देखे जाने चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि केवल इस्तीफा लेने से अधिक, मामलों की तह तक जाकर जवाबदेही तय की जाए ताकि भविष्य में ऐसी परिस्थितियाँ न बनें।
आगे की कार्रवाई और राजनीतिक असमंजस
राज्य सरकार ने अनुराग गुप्ता के इस्तीफे के बाद प्रभारी डीजीपी नियुक्त कर दिए हैं। अधिकारी स्तर पर कहा जा रहा है कि विभागीय जांच और प्रशासनिक समीक्षा चल रही है। राजनीतिक रूप से यह कदम झारखंड की सियासी हलचल को और तेज कर सकता है, खासकर कानून-व्यवस्था और शासन-प्रशासन के मामलों पर विपक्षी दलों की तीव्र निगरानी जारी रहने की उम्मीद है।
विपक्षी आशंकाएँ और सरकार की चुनौतियाँ
विपक्ष का कहना है कि असंवैधानिक नियुक्तियों, विवादित अफसरों और प्रशासनिक ढांचों की वजह से शासन-प्रशासन की कार्यक्षमता प्रभावित होती है। सरकार के सामने अब चुनौती यह है कि वह पारदर्शी जांच, जवाबदेही और संवैधानिक प्रक्रियाओं को सुनिश्चित करे ताकि शैल-स्थिरता और राजकीय विश्वास बहाल हो।
