सेवानिवृत्त लेक्चरर की याचिका पर सुनवाई
रांची : झारखंड हाईकोर्ट की खंडपीठ ने एक अहम आदेश पारित करते हुए स्पष्ट किया है कि केवल आपराधिक कार्यवाही लंबित रहने के आधार पर किसी कर्मचारी की पेंशन, ग्रेच्युटी और अन्य सेवानिवृत्ति लाभ रोके नहीं जा सकते। यह निर्णय मुख्य न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायमूर्ति राजेश शंकर की पीठ ने एक रिट याचिका की सुनवाई के दौरान दिया।
कोर्ट का आदेश : पेंशन कर्मचारी का वैधानिक अधिकार
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि जब तक किसी कर्मचारी को आपराधिक मामले में दोषसिद्धि (Conviction) नहीं होती, तब तक केवल मुकदमे के लंबित रहने के कारण सेवानिवृत्ति लाभों को रोका नहीं जा सकता। अदालत ने इसे कर्मचारी का वैधानिक और संवैधानिक अधिकार करार दिया।
मामला : शांति देवी बनाम रांची विश्वविद्यालय
यह आदेश रांची विश्वविद्यालय की सेवानिवृत्त व्याख्याता शांति देवी की याचिका पर आया। उन्होंने अपनी रिट याचिका में कहा था कि उन्हें अनिवार्य सेवानिवृत्ति के बाद भविष्य निधि (PF) तो मिल गया, लेकिन पेंशन, ग्रेच्युटी और अवकाश नकदीकरण जैसे लाभ विश्वविद्यालय प्रशासन ने रोक दिए।
सेवा इतिहास और विवादित कार्यवाही
- शांति देवी को 1984 में बीएनजे कॉलेज में अस्थायी व्याख्याता के रूप में नियुक्त किया गया था।
- बाद में उनका स्थानांतरण राम लखन सिंह यादव कॉलेज में हुआ और वर्ष 2003 में वे झारखंड लोक सेवा आयोग (JPSC) की सदस्य भी बनीं।
- 2011 में सतर्कता विभाग ने उन्हें एक मामले में गिरफ्तार किया था, जिसके बाद उन्हें निलंबित कर दिया गया।
- बाद में जमानत मिलने पर वे बहाल हुईं, लेकिन नैतिक पतन से जुड़े मामले लंबित रहने के कारण 2015 में पुनः निलंबित कर दी गईं।
- 2018 में रांची विश्वविद्यालय ने उन्हें अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे दी।
झारखंड हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय
याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने कहा कि जब तक किसी कर्मचारी को अपराध साबित होने पर दोषी नहीं ठहराया जाता, तब तक उसकी पेंशन और ग्रेच्युटी रोकना उचित नहीं है। यह आदेश न केवल शांति देवी के मामले में, बल्कि राज्य के अन्य सरकारी कर्मचारियों और पेंशनभोगियों के लिए भी एक महत्वपूर्ण नजीर साबित हो सकता है।
कानूनी और प्रशासनिक असर
इस आदेश के बाद झारखंड के हजारों सेवानिवृत्त कर्मचारियों को राहत मिल सकती है, जिनके पेंशन और अन्य सेवानिवृत्ति लाभ लंबित आपराधिक मामलों के कारण रोके गए हैं। अदालत का फैसला प्रशासन को यह स्पष्ट संदेश देता है कि सेवानिवृत्ति लाभ मौलिक अधिकारों से जुड़े हैं और इन्हें अनावश्यक रूप से रोका नहीं जा सकता।
इसे भी पढ़ें