रांची (झारखंड): गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर संस्कार भारती रांची महानगर की ओर से एक विशेष पहल ‘सम्मान आपके द्वार पर’ कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस अभिनव आयोजन के अंतर्गत संस्कार भारती की टीम ने दो विशिष्ट गुरुओं – माया वर्मा और पद्मश्री मुकुंद नायक को उनके आवास पर जाकर सम्मानित किया। यह कार्यक्रम गुरु-शिष्य परंपरा को जीवंत रखने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।

Ranchi News: माया वर्मा को संगीत, लोकगीत और शिक्षा क्षेत्र में योगदान के लिए सम्मान

माया वर्मा, जो वर्षों से संगीत और लोकगीत के साथ-साथ शिक्षा क्षेत्र में भी सक्रिय हैं, को उनकी सेवाओं के लिए ‘सम्मान आपके द्वार पर’ कार्यक्रम के तहत सम्मानित किया गया। संस्था के सदस्यों ने उनके आवास पर जाकर पुष्पगुच्छ, अंगवस्त्र और स्मृति चिन्ह भेंट कर गुरु पूर्णिमा की शुभकामनाएं दीं।

कार्यक्रम में उपस्थित श्रोताओं को माया वर्मा की लोकगीत प्रस्तुति का अवसर भी मिला, जिसने संपूर्ण वातावरण को संगीतमय बना दिया।

पद्मश्री मुकुंद नायक को लोकनृत्य और लोकगायन में योगदान के लिए दिया गया सम्मान

झारखंड के प्रसिद्ध लोक कलाकार पद्मश्री मुकुंद नायक, जो लोकनृत्य और लोकगायन की पहचान हैं, उन्हें भी इस कार्यक्रम के तहत उनके आवास पर जाकर सम्मानित किया गया। उनके योगदान को जनजातीय संस्कृति और लोक कला के संवर्धन में महत्वपूर्ण माना जाता है।

कार्यक्रम में उन्होंने भी पारंपरिक लोकगीतों की प्रस्तुति देकर उपस्थित लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया।

गुरु पूर्णिमा के अवसर पर बना रांची में सांस्कृतिक माहौल

इस आयोजन में प्रांत अध्यक्ष सुशील अंकन, रांची अध्यक्ष रामानुज पाठक, उपाध्यक्ष आशुतोष प्रसाद, महामंत्री शशिकला पौराणिक, कोषाध्यक्ष अनूप मजूमदार सहित अन्य गणमान्य सदस्य मौजूद रहे। सभी ने मिलकर गुरुजनों के प्रति सम्मान प्रकट किया और इस कार्यक्रम को हर वर्ष आयोजित करने की घोषणा की।

शशिकला पौराणिक ने जानकारी दी कि ‘सम्मान आपके द्वार पर’ कार्यक्रम अब एक वार्षिक स्थायी परंपरा के रूप में मनाया जाएगा। संस्था का उद्देश्य है कि गुरुजनों को उनके घर जाकर सम्मानित किया जाए, जिससे समाज में शिक्षकों और कलागुरुओं के प्रति संवेदनशीलता और सम्मान की भावना और अधिक प्रबल हो।

संस्कार भारती की पहल बनी गुरु सम्मान की नई मिसाल

‘सम्मान आपके द्वार पर’ कार्यक्रम ने यह संदेश दिया कि गुरु केवल विद्यालय या मंच तक सीमित नहीं होते, बल्कि वे समाज के हर कोने में अपनी विद्या और सेवा से प्रकाश फैला रहे हैं। इस अभिनव पहल ने यह सिद्ध किया कि गुरु सम्मान सिर्फ एक दिन का कार्यक्रम नहीं, बल्कि यह एक निरंतर चलने वाली सामाजिक चेतना बन सकती है।

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