रांची | 17 अक्टूबर: राजधानी रांची के धुर्वा स्थित प्रभात तारा मैदान आज आदिवासी हुंकार रैली का केंद्र बन गया, जहां हजारों की संख्या में झारखंड के विभिन्न जिलों से आदिवासी समाज के लोग पहुंचे। यह रैली कुड़मी समाज की एसटी (अनुसूचित जनजाति) दर्जे की मांग के विरोध में आयोजित की गई, जिसमें झारखंड के सभी प्रमुख आदिवासी समुदायों ने एक स्वर में अपनी अस्मिता और अधिकारों की रक्षा का संकल्प लिया।

आदिवासी हुंकार रैली में उमड़ा जनसैलाब

आदिवासी बचाओ मोर्चा के बैनर तले आयोजित इस रैली में रांची के अलावा खूंटी, लोहरदगा, चतरा, गुमला, सिमडेगा, लातेहार, मांडर, सिल्ली और सरायकेला जैसे जिलों से बड़ी संख्या में लोग पारंपरिक वेशभूषा, ढोल-नगाड़ों, तीर-धनुष और झंडों के साथ पहुंचे। रैली स्थल पर पूरे मैदान में पारंपरिक गीतों और थापों की गूंज सुनाई दी।

हजारों की भीड़ के बीच आदिवासी एकता, परंपरा और पहचान को दर्शाने वाले नारे—“हमारी पहचान, हमारी अस्मिता,” “आदिवासियों पर हमला नहीं बर्दाश्त”—लगातार गूंजते रहे।

राज्य के 33 आदिवासी समुदायों की भागीदारी

इस रैली में झारखंड के 33 आदिवासी समुदायों—मुंडा, उरांव, संथाल, हो, खड़िया, बिरहोर, पहान, असुर, माल पहाड़िया और अन्य जनजातियों—की उपस्थिति रही। सभी समुदायों के प्रतिनिधियों ने मंच से अपने विचार रखे और कहा कि कुड़मी समाज को एसटी सूची में शामिल करने की मांग संविधान के दायरे से बाहर है।

वक्ताओं ने कहा कि आदिवासी समाज की पहचान, परंपरा और इतिहास को कमजोर करने का हर प्रयास अस्वीकार्य है।

मंच से उठी आवाज – “हमारी अस्मिता पर नहीं होगा समझौता”

रैली के दौरान मंच से कई सामाजिक नेताओं, जनप्रतिनिधियों और पारंपरिक मुखियाओं ने कहा कि आदिवासी समाज का इतिहास हजारों वर्षों पुराना है और इसे किसी नई परिभाषा में बांधा नहीं जा सकता। उन्होंने केंद्र और राज्य सरकारों से अपील की कि कुड़मी समाज को अनुसूचित जनजाति सूची में शामिल करने की प्रक्रिया को तुरंत रोका जाए।

वक्ताओं ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि यह केवल एक मांग का विरोध नहीं, बल्कि आदिवासी अस्मिता और पहचान की रक्षा का आंदोलन है।

सुरक्षा व्यवस्था और प्रशासनिक तैयारी

संभावित भीड़ को देखते हुए प्रशासन ने प्रभात तारा मैदान और उसके आसपास कड़ी सुरक्षा व्यवस्था की थी। ट्रैफिक पुलिस ने वैकल्पिक मार्ग निर्धारित किए, जबकि कार्यक्रम स्थल पर लगभग 100 से अधिक वालंटियर भीड़ नियंत्रण और व्यवस्था बनाए रखने में तैनात रहे।

सांस्कृतिक रंग में रंगा आदिवासी हुंकार

रैली के दौरान पारंपरिक नृत्य और संगीत ने पूरे माहौल को सांस्कृतिक रंग में बदल दिया। महिलाएं पारंपरिक पोशाकों में थाप पर थिरकती नजर आईं, वहीं युवा हाथों में तीर-धनुष और झंडे लिए एकजुटता का प्रदर्शन कर रहे थे। यह दृश्य झारखंड की आदिवासी विरासत, एकता और संघर्षशीलता का प्रतीक बना।

राजनीतिक हलकों में बढ़ी हलचल

आदिवासी हुंकार रैली के बाद झारखंड की राजनीति में हलचल तेज हो गई है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस आयोजन से राज्य की जनजातीय राजनीति पर व्यापक असर पड़ सकता है। कुड़मी समाज की एसटी मांग के खिलाफ यह एकजुटता आने वाले समय में नीतिगत निर्णयों और राजनीतिक समीकरणों को भी प्रभावित कर सकती है।

आदिवासी हुंकार रैली का संदेश

रैली ने यह स्पष्ट कर दिया कि झारखंड का आदिवासी समाज अपनी अस्मिता, संस्कृति और परंपरा की रक्षा के लिए एकजुट है। वक्ताओं ने यह भी कहा कि झारखंड राज्य आदिवासी आंदोलन की उपज है और इस आंदोलन की भावना को कमजोर करने का कोई भी प्रयास स्वीकार्य नहीं होगा।

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