रांची | 18 अक्टूबर: आदिवासी हुंकार रैली के मंच से जुड़ा विवाद उस समय गहराया जब केंद्रीय सरना समिति की राष्ट्रीय महिला अध्यक्ष निशा भगत को मंच से उतार दिया गया। इस घटना के बाद उन्होंने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि रैली ईसाई समुदाय के प्रभाव में आयोजित की गई थी और जानबूझकर उन्हें तथा केंद्रीय सरना समिति के अध्यक्ष को मंच पर जगह नहीं दी गई।
निशा भगत का आरोप : “धर्मांतरित ईसाई समाज के लिए बड़ी चुनौती”
निशा भगत ने कहा कि राज्य में धर्मांतरण लगातार बढ़ रहा है और यह आदिवासी समाज की अस्मिता पर सीधा हमला है। उन्होंने कहा,
“कुर्मी समाज से ज्यादा खतरनाक धर्मांतरित ईसाई हैं, क्योंकि ये लोग आदिवासी समाज के आरक्षण, अधिकार और पहचान पर कब्जा कर रहे हैं।”
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि कुछ धर्मांतरित समूह सarna स्थलों और धार्मिक प्रतीकों पर कब्जा करने की कोशिश कर रहे हैं। इस संबंध में उन्होंने जनजातीय आयोग में शिकायत दर्ज कराई है, जहां जांच प्रक्रिया जारी है।
मंच विवाद के बाद बढ़ा राजनीतिक तापमान
प्रभात तारा मैदान, धुर्वा में आयोजित इस रैली के दौरान निशा भगत को बोलने से रोका गया, जिसके बाद उन्हें मंच से नीचे उतरना पड़ा। उन्होंने कहा कि वह “सत्य बोलने के कारण मंच से हटाई गईं।”
निशा भगत का कहना है कि उन्होंने हमेशा आदिवासी अस्मिता, सरना धर्म और पारंपरिक संस्कृति की रक्षा के लिए आवाज उठाई है, लेकिन ईसाई धर्मांतरण पर खुलकर बोलने के कारण उन्हें निशाना बनाया जा रहा है।
धर्मांतरण के खिलाफ जारी संघर्ष
निशा भगत ने बताया कि इससे पहले लातेहार में आयोजित एक कार्यक्रम से पूर्व भी उन्हें धमकी दी गई थी। धमकी देने वालों ने कहा था कि वह धर्मांतरण के मुद्दे पर कुछ न कहें, जिसके चलते वह कार्यक्रम स्थगित करना पड़ा।
उन्होंने कहा कि धमकियों के बावजूद वह आदिवासी समाज के अधिकार और सरना धर्म की रक्षा के लिए अपनी आवाज उठाती रहेंगी।
आदिवासी नेताओं पर लगाए गंभीर आरोप
केंद्रीय सरना समिति की महिला अध्यक्ष ने कई आदिवासी नेताओं पर अपने ही समाज को गुमराह करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि कुछ नेता राजनीतिक स्वार्थ के लिए सरना संस्कृति को छोड़ रहे हैं और धर्मांतरितों को संरक्षण दे रहे हैं।
“ऐसे नेता आदिवासी परंपरा को तोड़ रहे हैं और अपने फायदे के लिए समाज को बांटने का काम कर रहे हैं।”
आदिवासी हुंकार रैली में ईसाई धर्मांतरण मुद्दा बना केंद्र
धुर्वा में आयोजित आदिवासी हुंकार रैली में झारखंड के विभिन्न जिलों—रांची, खूंटी, सिमडेगा, गुमला, लोहरदगा, लातेहार और चतरा—से हजारों की संख्या में लोग पहुंचे। रैली का उद्देश्य कुड़मी समाज की एसटी मांग के विरोध में एकजुटता दिखाना था, लेकिन निशा भगत के मंच से हटाए जाने और धर्मांतरण संबंधी बयान के बाद यह कार्यक्रम विवादों में आ गया।
सरना धर्म और पहचान की रक्षा पर जोर
निशा भगत ने कहा कि सरना धर्मावलंबियों की आस्था, परंपरा और पहचान पर लगातार हमला हो रहा है। उन्होंने समाज से अपील की कि वह संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए एकजुट होकर आगे आएं।
उनका कहना है कि “सरना धर्म कोई मज़हब विरोध नहीं, बल्कि प्रकृति पूजा पर आधारित जीवन दर्शन है, जिसे बचाने के लिए हर आदिवासी को जागरूक होना होगा।”