रांची: झारखंड की राजनीति में जिस तेजी से जयराम महतो का उदय हुआ था, वह सभी को हैरान कर देने वाला था।
परंतु, जिस गति से वे चर्चाओं में आए, अब उतनी ही तेजी से विवादों में भी घिरते नज़र आ रहे हैं। पार्टी के अंदरूनी मतभेद और संघर्षों ने उनकी मुश्किलें और बढ़ा दी हैं।
झारखंड क्रांतिकारी लोकतांत्रिक मोर्चा (जेकेएलएम) के प्रमुख जयराम महतो को हाल ही में पार्टी के भीतर बड़ा झटका लगा है।
जेकेएलएम को लगा बड़ा धक्का
पार्टी के दो प्रमुख नेताओं का इस्तीफा जयराम महतो के लिए एक गंभीर समस्या बन गया है।
विधानसभा चुनाव नजदीक होने के बावजूद पार्टी के अल्पसंख्यक मोर्चा के केंद्रीय अध्यक्ष रिजवान अंसारी और केंद्रीय उपाध्यक्ष संजय मेहता ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया है।
इस घटनाक्रम ने जेकेएलएम की राजनीतिक स्थिति को कमजोर कर दिया है, खासकर चुनावी तैयारियों के लिहाज से।
आरोपों का दौर: रिश्वत और उपेक्षा के आरोप
रिजवान अंसारी पर अवैध वसूली के आरोप लगे थे, जबकि संजय मेहता ने जयराम महतो पर उपेक्षा का आरोप लगाते हुए पार्टी से किनारा कर लिया।
संजय मेहता का कहना है कि जयराम महतो उन्हें लगातार “अपमानित” कर रहे थे और उनके लोकसभा क्षेत्र में आयोजित कार्यक्रमों की जानकारी भी नहीं देते थे।
इसी उपेक्षा के कारण संजय मेहता ने पार्टी से इस्तीफा देने का कठोर निर्णय लिया।
संजय मेहता के इस्तीफे का प्रभाव

संजय मेहता का जेकेएलएम छोड़ना, पार्टी के लिए एक बड़ा झटका साबित हो रहा है।
पिछले लोकसभा चुनाव में उन्होंने हजारीबाग से लगभग डेढ़ लाख वोट हासिल किए थे।
ऐसे में उनका पार्टी से जाना निश्चित रूप से पार्टी की चुनावी संभावनाओं को प्रभावित करेगा।
विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी में उथल-पुथल
विधानसभा चुनाव महज कुछ महीने दूर हैं, और ऐसे समय में पार्टी के भीतर मची यह उथल-पुथल पार्टी के चुनावी प्रदर्शन पर गहरा असर डाल सकती है।
पार्टी के अंदरूनी कलह के चलते, यह देखना दिलचस्प होगा कि जयराम महतो इस स्थिति से कैसे निपटते हैं और पार्टी को एकजुट करके चुनावी मैदान में कैसे उतरते हैं।
और नेताओं का इस्तीफा संभावित
अटकलें लगाई जा रही हैं कि आने वाले दिनों में जेकेएलएम के कई और बड़े नेता पार्टी से किनारा कर सकते हैं।
ऐसी चर्चा है कि रांची लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने वाले देवेंद्र नाथ महतो भी जयराम महतो से नाराज़ चल रहे हैं और वे भी कभी भी पार्टी छोड़ सकते हैं।
झारखंड की राजनीति में जयराम महतो के सामने चुनौतियों का पहाड़ खड़ा हो गया है।
अब यह देखना बाकी है कि वे इन कठिन परिस्थितियों का सामना कैसे करते हैं और पार्टी को फिर से मजबूत करने के लिए कौन से कदम उठाते हैं।
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