रांची: आदिवासी समाज के प्रमुख पर्व करम उत्सव का आयोजन भादो एकादशी के अवसर पर श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय (DSPMU) में पूरे उत्साह और परंपरागत रीति-रिवाजों के साथ किया गया। इस अवसर पर विश्वविद्यालय परिसर अखड़े की तरह सजा रहा, जहां विद्यार्थियों ने झूम-झूमकर नृत्य प्रस्तुत किए और करम गीतों की गूंज से वातावरण जीवंत हो उठा।
करम उत्सव में करम पेड़ की पूजा और करम कथा का वाचन
कार्यक्रम की शुरुआत करम पेड़ की पूजा-अर्चना के साथ हुई। जगलाल पाहन ने विधि-विधान से करम पेड़ की पूजा कराई और करम देव की कथा सुनाकर छात्र-छात्राओं को करम पर्व का महत्व बताया। इस मौके पर आदिवासी छात्र संघ (Adivasi Chhatra Sangh) की ओर से पारंपरिक अनुष्ठान पूरे श्रद्धा भाव से संपन्न किए गए।
पांच जनजातीय भाषाओं में सांस्कृतिक प्रस्तुति
DSPMU रांची के करम उत्सव की खासियत रही कि इसमें मुंडारी, कुड़ुख, संथाली, हो और खड़िया—इन पांच प्रमुख जनजातीय भाषाओं में सामूहिक नृत्य और गीत प्रस्तुत किए गए। छात्र-छात्राओं ने पारंपरिक आदिवासी परिधान पहनकर सांस्कृतिक धरोहर को जीवंत रूप दिया। जनजातीय भाषा विभाग और छात्रावास से आए विद्यार्थियों ने अपनी भागीदारी से उत्सव को बहुरंगी रूप प्रदान किया।
नगाड़ा और मांदर की थाप पर थिरके विद्यार्थी
करम राग की धुन और मांदर की थाप पर छात्र-छात्राएं पारंपरिक करम नृत्य करते दिखाई दिए। आदिवासी छात्रावास की छात्राओं ने जावा उठाने से लेकर करम देव के विसर्जन तक के गीत प्रस्तुत किए, वहीं छात्रों ने मांदर और नगाड़ा बजाकर अखड़े का माहौल और उल्लासपूर्ण बना दिया। दर्शकों ने भी तालियां बजाकर प्रस्तुतियों का उत्साहवर्धन किया।
करम उत्सव से झलकी आदिवासी संस्कृति और परंपरा
इस अवसर पर करम उत्सव ने आदिवासी समाज की समृद्ध संस्कृति, पारंपरिक गीत-संगीत, वेशभूषा और सामूहिकता की झलक प्रस्तुत की। करम पूजा और नृत्य में शामिल विद्यार्थियों ने दिखाया कि यह पर्व केवल धार्मिक अनुष्ठान ही नहीं, बल्कि सामाजिक एकजुटता और प्रकृति के प्रति आदर का प्रतीक है।