रांची: झारखंड की राजधानी रांची से लगभग 22 किलोमीटर दूर पिठोरिया स्थित शिव मंदिर इन दिनों चर्चा में है। सावन मास के अवसर पर जहां पूरे देश में भगवान शिव की आराधना चरम पर होती है, वहीं पिठोरिया का यह मंदिर एक अनोखी परंपरा के कारण विशेष रूप से सुर्खियों में है। यहां शिवलिंग की पूजा से पहले रावण की विधिवत वंदना की जाती है।
रावण की पूजा की परंपरा
पिठोरिया शिव मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहां मंदिर में प्रवेश से पूर्व भक्त रावण की मूर्ति के दर्शन करते हैं। मंदिर के शिखर पर शिवभक्ति में लीन दशानन रावण की एक भव्य प्रतिमा स्थापित है। स्थानीय परंपराओं के अनुसार, पूजा की शुरुआत रावण की स्तुति से होती है और इसके बाद ही शिवलिंग का पूजन किया जाता है।
यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है और श्रद्धालु इसे शिवभक्ति की एक अनूठी अभिव्यक्ति मानते हैं।
नागवंशी शासकों से जुड़ा है पिठोरिया का इतिहास
पिठोरिया का यह इलाका ऐतिहासिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है। 12वीं से 13वीं शताब्दी के दौरान यह नागवंशी राजाओं की सांस्कृतिक राजधानी हुआ करता था। पिठोरिया शिव मंदिर लगभग 400 वर्ष पुराना है और इसके स्थापत्य में नागवंशी युग की झलक स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है।
रावण: शिवभक्त, विद्वान और आचार्य
पिठोरिया शिव मंदिर में रावण को केवल राक्षस नहीं, बल्कि महान शिवभक्त और प्रकांड वेदज्ञ के रूप में देखा जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब भगवान शिव पार्वती के साथ कैलाश पर्वत पर गृह प्रवेश कर रहे थे, तब रावण ने ब्राह्मण का वेश धारण कर उनका विधिपूर्वक गृह प्रवेश कराया था। यह प्रसंग पिठोरिया की पूजा पद्धति का आधार बन गया।
श्रद्धालुओं की भारी भीड़
सावन मास में यह मंदिर हजारों शिवभक्तों के लिए आस्था का केंद्र बन जाता है। झारखंड सहित बिहार और बंगाल से बड़ी संख्या में श्रद्धालु पिठोरिया पहुंचते हैं। रावण की स्तुति और फिर शिव पूजा की यह परंपरा भक्तों के लिए आध्यात्मिक अनुभव का केंद्र बन चुकी है।
सांस्कृतिक सहिष्णुता का प्रतीक
पिठोरिया शिव मंदिर केवल धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि झारखंड की सांस्कृतिक आत्मा का प्रतिनिधित्व करता है। पुरातत्व विशेषज्ञ मानते हैं कि यह मंदिर नागवंशी काल की सांस्कृतिक विरासत को सहेज कर रखने वाला एक दुर्लभ उदाहरण है। यहां रावण को पूजने की परंपरा धार्मिक सहिष्णुता और विविधता की मिसाल प्रस्तुत करती है।
भारत में रावण पूजन के अन्य केंद्र
देशभर में कुछ और स्थान भी हैं, जहां रावण को पूजनीय माना जाता है:
- बिसरख (उत्तर प्रदेश): रावण का जन्मस्थान
- बैजनाथ (हिमाचल प्रदेश): रावण की शिव तपस्या स्थल
- काकिनाडा (आंध्र प्रदेश): रावण मंदिर
- मालवल्ली (कर्नाटक): विद्या और भक्ति का प्रतीक
- जोधपुर (राजस्थान): रावण की प्रतिमा पूजन परंपरा
इतिहासकार मानते हैं कि रावण केवल नकारात्मक पात्र नहीं था, बल्कि कई क्षेत्रों में उसे वेद, विज्ञान और नीति का ज्ञाता भी माना गया है।
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