रांची: झारखंड हाईकोर्ट की खंडपीठ ने बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्ष काजल यादव और सदस्य सुनील कुमार वर्मा को बड़ी राहत दी है। न्यायालय ने राज्य सरकार द्वारा 12 फरवरी 2024 को जारी बर्खास्तगी आदेश को निरस्त करते हुए मामले को महिला एवं बाल विकास विभाग के प्रधान सचिव के पास पुनः विचार के लिए भेज दिया है।
हाईकोर्ट ने कहा, बर्खास्तगी में नहीं हुआ न्याय का पालन
झारखंड हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने पाया कि आयोग के अध्यक्ष और सदस्य को पद से हटाने से पूर्व सरकार ने न तो जांच रिपोर्ट की प्रति उन्हें उपलब्ध कराई, और न ही उन्हें अपना पक्ष रखने का पर्याप्त अवसर दिया। न्यायालय ने इस कार्रवाई को “न्याय के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन” करार देते हुए कहा कि बिना समुचित प्रक्रिया के कोई भी आदेश कानूनी रूप से वैध नहीं ठहराया जा सकता।
एकल पीठ के आदेश को भी किया खारिज
इससे पहले, 18 सितंबर 2024 को हाईकोर्ट की एकल पीठ ने काजल यादव और सुनील वर्मा की याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि इसमें कोई विधिक त्रुटि नहीं है। इस फैसले को चुनौती देते हुए दोनों ने डिवीजन बेंच में अपील दायर की थी, जिसे अब न्यायालय ने स्वीकारते हुए एकल पीठ के निर्णय को भी रद्द कर दिया है।
आयोग में अनियमितता के आरोप थे कारण
सरकार द्वारा दोनों अधिकारियों पर यह आरोप लगाया गया था कि उन्होंने अपने पद का दुरुपयोग किया, कार्य संचालन में अनियमितताएं बरतीं और प्रशासनिक प्रक्रिया का उल्लंघन किया। इन्हीं आरोपों के आधार पर तत्कालीन प्रधान सचिव वंदना दादेल ने फरवरी 2024 में बर्खास्तगी आदेश जारी किया था।
सरकारी कार्रवाई पर उठे सवाल
हाईकोर्ट के आदेश से यह स्पष्ट होता है कि राज्य सरकार द्वारा की गई कार्रवाई में पारदर्शिता और प्रक्रियात्मक अनुशासन का पालन नहीं किया गया। न्यायालय ने सरकार को निर्देश दिया है कि वह इस प्रकरण की नए सिरे से जांच कर निष्पक्ष रूप से निर्णय ले।
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