पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने पेसा (पंचायत विस्तार अनुसूचित क्षेत्र) अधिनियम की नियमावली को लेकर राज्य सरकार पर तीखा हमला बोला है। उन्होंने कहा कि सरकार पेसा कानून के नाम पर आदिवासी समाज को केवल “लॉलीपॉप” दिखा रही है और असल अधिकार देने से बच रही है।
मंगलवार को प्रदेश भाजपा कार्यालय में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में रघुवर दास ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा बनाई गई पेसा नियमावली, पेसा अधिनियम 1996 की मूल भावना के बिल्कुल विपरीत है।
पेसा का उद्देश्य खत्म किया जा रहा है
रघुवर दास ने कहा कि पेसा कानून का उद्देश्य आदिवासी समाज की पारंपरिक व्यवस्था को समाप्त करना नहीं, बल्कि उसे संवैधानिक संरक्षण देकर सशक्त बनाना है।
उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार की नियमावली—
- आदिवासी परंपराओं को कमजोर करती है
- ग्रामसभा की असली शक्ति को सीमित करती है
- पारंपरिक नेतृत्व व्यवस्था को नजरअंदाज करती है
परंपरागत ग्राम व्यवस्था की अनदेखी
पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि झारखंड के विभिन्न आदिवासी समुदायों की अपनी पारंपरिक शासन प्रणाली रही है—
- संथाल : मांझी–परगना
- हो समाज : मुंडा–मानकी–दिउरी
- मुंडा समाज : हातु मुंडा, पाहन
- उरांव समाज : महतो, पड़हा राजा
- खड़िया समुदाय : ढोकलो–सोहोर
- भूमिज समाज : मुंडा, सरदार, डाकुआ
पेसा अधिनियम की धारा 4(क), 4(ख), 4(ग) और 4(घ) में इन परंपराओं को मान्यता दी गई है, लेकिन राज्य सरकार की नियमावली में इन्हें नजरअंदाज कर दिया गया है।
ग्रामसभा की भूमिका पर सवाल
रघुवर दास ने सवाल उठाया कि—
- क्या ग्रामसभा का नेतृत्व ऐसे लोग करेंगे जो परंपरागत आदिवासी व्यवस्था से नहीं जुड़े हैं?
- क्या बालू, लघु खनिज, वन उत्पाद और जल स्रोतों पर वास्तव में ग्रामसभा को अधिकार मिलेगा?
- या फिर सरकार पहले की तरह नियंत्रण अपने पास ही रखेगी?
उन्होंने कहा कि नियमावली में इन बिंदुओं को स्पष्ट नहीं किया गया है, जो बेहद चिंताजनक है।
“आदिवासियों के साथ धोखा”
रघुवर दास ने कहा कि—
“सरकार पेसा के नाम पर आदिवासी समाज को गुमराह कर रही है। यह कानून अधिकार देने के लिए बना था, न कि उन्हें छीनने के लिए।”
उन्होंने राज्य सरकार से मांग की कि पेसा नियमावली को जनभावना के अनुरूप संशोधित किया जाए और पारंपरिक ग्राम व्यवस्था को पूरा सम्मान दिया जाए।
