रांची : झारखंड में चाईबासा के सदर अस्पताल में थैलेसीमिया से पीड़ित बच्चों को कथित रूप से एचआईवी संक्रमित रक्त चढ़ाए जाने के मामले ने राज्य की राजनीति और स्वास्थ्य व्यवस्था को झकझोर कर रख दिया है। यह मामला अब तेजी से तूल पकड़ रहा है, जहां भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी ने सरकार पर तीखा हमला बोला है, इसे “राज्य प्रायोजित हत्या” करार देते हुए गंभीर कार्रवाई की मांग की है।
बाबूलाल मरांडी ने झारखंड सरकार को ठहराया जिम्मेदार
नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी ने कहा कि थैलेसीमिया पीड़ित मासूमों को एचआईवी संक्रमित खून चढ़ाया जाना महज लापरवाही नहीं, बल्कि शासन और स्वास्थ्य व्यवस्था की असफलता का जीवंत प्रमाण है। उन्होंने स्पष्ट कहा,
“अगर भविष्य में इन बच्चों की जान जाती है, तो यह केवल चिकित्सकीय गलती नहीं, बल्कि राज्य प्रायोजित हत्या कहलाएगी।”
मरांडी ने झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से कहा कि यह मामला केवल डॉक्टरों या ब्लड बैंक तकनीशियनों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे स्वास्थ्य विभाग की नाकामी और सरकार की संवेदनहीनता को दर्शाता है।
चाईबासा ब्लड बैंक पर उठे सवाल
इस घटना के बाद चाईबासा के ब्लड बैंक की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। थैलेसीमिया जैसी गंभीर बीमारी से पीड़ित बच्चों को नियमित रूप से सुरक्षित रक्त की आवश्यकता होती है, लेकिन इस तरह की घटना ने राज्य के रक्त परीक्षण मानकों, ब्लड बैंक प्रोटोकॉल और निगरानी व्यवस्था की स्थिति पर प्रश्नचिह्न लगा दिया है।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि एचआईवी संक्रमित रक्त का ट्रांसफ्यूजन सिर्फ तकनीकी गलती नहीं हो सकती — यह सिस्टम की गहरी खामियों और प्रशासनिक लापरवाही की ओर संकेत करता है।
भाजपा ने की स्वास्थ्य मंत्री को हटाने की मांग
बाबूलाल मरांडी ने इस घटना के लिए सीधे तौर पर झारखंड के स्वास्थ्य मंत्री को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा कि केवल डॉक्टरों को निलंबित करने से समस्या का समाधान नहीं होगा।
उन्होंने मुख्यमंत्री से मांग की कि राज्य को “सबसे अयोग्य और निष्क्रिय स्वास्थ्य मंत्री” से मुक्त किया जाए और एक संवेदनशील और जिम्मेदार मंत्री की नियुक्ति की जाए, जो स्वास्थ्य तंत्र में जवाबदेही सुनिश्चित कर सके।
राज्यभर में बढ़ रहा जनाक्रोश
एचआईवी संक्रमित रक्त चढ़ाने की घटना के बाद पूरे राज्य में आक्रोश का माहौल है। सामाजिक संगठनों और बाल अधिकार कार्यकर्ताओं ने इसे बच्चों के जीवन से किया गया “निर्दय खेल” बताया है। रांची, जमशेदपुर, बोकारो और दुमका सहित कई जिलों में स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही पर विरोध प्रदर्शन हुए हैं।
जनता की मांग है कि दोषियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाए और सभी ब्लड बैंकों की तत्काल जांच कराई जाए ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाएं दोबारा न हों।
स्वास्थ्य विभाग ने मांगी रिपोर्ट
सूत्रों के अनुसार, स्वास्थ्य विभाग ने घटना की जांच के लिए तीन सदस्यीय जांच समिति गठित की है। समिति को सात दिनों के भीतर रिपोर्ट देने का निर्देश दिया गया है। वहीं, राज्य रक्त संक्रमण परिषद (State Blood Transfusion Council) को भी सभी ब्लड बैंकों की ऑडिट रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा गया है।
हालांकि विपक्ष का कहना है कि केवल जांच समितियां बनाना पर्याप्त नहीं है। जब तक सिस्टम में पारदर्शिता और जवाबदेही नहीं लाई जाएगी, तब तक राज्य के स्वास्थ्य तंत्र पर से जनता का विश्वास बहाल नहीं हो सकेगा।
विशेषज्ञों ने दी चेतावनी
थैलेसीमिया विशेषज्ञ डॉक्टरों ने कहा कि इस तरह की घटना से न केवल पीड़ित बच्चों का जीवन खतरे में है, बल्कि यह स्वास्थ्य सुरक्षा के पूरे ढांचे की विफलता को दर्शाता है। डॉक्टरों के अनुसार, ब्लड डोनेशन से लेकर ट्रांसफ्यूजन तक हर चरण में सुरक्षा जांच और प्रमाणन प्रक्रिया अनिवार्य होती है, जिसे इस मामले में गंभीरता से नहीं अपनाया गया।
विशेषज्ञों ने सरकार से अपील की कि सभी ब्लड बैंकों में नेशनल एड्स कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन (NACO) द्वारा निर्धारित मानकों को सख्ती से लागू किया जाए और दोषियों पर कड़ी कार्रवाई की जाए।
झारखंड में स्वास्थ्य तंत्र पर उठे व्यापक सवाल
यह घटना झारखंड के स्वास्थ्य तंत्र की स्थिति पर गंभीर सवाल खड़े करती है। हाल के वर्षों में चिकित्सा अवसंरचना की कमजोरी, ब्लड बैंक प्रबंधन में अनियमितता और अस्पतालों में जवाबदेही की कमी जैसी समस्याएं बार-बार सामने आती रही हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह मामला सिर्फ स्वास्थ्य विभाग का नहीं, बल्कि पूरे प्रशासनिक ढांचे की विफलता का प्रतीक है, जिससे राज्य की छवि और विश्वसनीयता दोनों प्रभावित हुई हैं।
