Ranchi: झारखंड विधानसभा चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को बड़ी राहत मिली है। चुनाव में टिकट न मिलने के कारण नाराज चल रहे पार्टी के अधिकांश बागी उम्मीदवार आखिरकार मान गए हैं। सत्यानंद झा बाटूल, वीरेंद्र मंडल, गुरुचरण नायक, मुनचुन राय, कमलेश राम जैसे कई नेताओं ने चुनाव से नामांकन वापस लेकर भाजपा का साथ देने का निर्णय लिया है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण भूमिका असम के मुख्यमंत्री और झारखंड चुनाव सह प्रभारी हिमंता विस्व सरमा की रही, जिन्होंने आगे बढ़कर बागियों को मनाने का कार्यभार संभाला और बड़ी संख्या में बागियों को राजी किया।
हिमंता विस्व सरमा की महत्वपूर्ण भूमिका
भाजपा के अंदरुनी संकट को सुलझाने में कई वरिष्ठ नेताओं का योगदान रहा, लेकिन हिमंता विस्व सरमा ने अपनी रणनीतिक सूझबूझ और संवाद कौशल से सबसे अधिक बागियों को समझाया। सरमा ने एक-एक बागी से मुलाकात की और उन्हें पार्टी के साथ बने रहने के लिए मनाया। उन्होंने बागियों को भरोसा दिलाया कि यदि सरकार बनती है, तो उन्हें पूरा मान-सम्मान मिलेगा। इस प्रकार, हिमंता विस्व सरमा ने भाजपा के लिए चुनाव में कई महत्वपूर्ण सीटों पर संभावित नुकसान को नियंत्रित करने में सफलता पाई है।
विनोद सिंह और निरंजन राय: बागियों में अब मुख्य चेहरें
भाजपा के कई बागियों के मान जाने के बावजूद कुछ प्रमुख चेहरे अब भी मैदान में डटे हुए हैं। इनमें हुसैनाबाद से विनोद सिंह, गुमला से मिसिर उरांव और धनवार से भाजपा समर्थक निरंजन राय प्रमुख हैं। निरंजन राय का चुनाव लड़ना भाजपा के लिए चुनौती बना हुआ है। भाजपा के कई वरिष्ठ नेता और गोड्डा के सांसद निशिकांत दुबे ने उन्हें मनाने का प्रयास किया, लेकिन निरंजन राय नहीं माने। वह झारखंड सरकार के प्रमुख ठेकेदारों में से एक हैं और सत्ता के साथ उनके मजबूत संबंध हैं, जिससे भाजपा के प्रयास विफल रहे हैं।
निरंजन राय का धनवार से चुनाव लड़ने का उद्देश्य
सूत्रों के अनुसार, निरंजन राय का चुनाव लड़ने का मकसद भाजपा प्रदेश अध्यक्ष और धनवार से प्रत्याशी बाबूलाल मरांडी को नुकसान पहुंचाना है। उनकी क्षेत्र में मजबूत पकड़, आर्थिक स्थिति और सत्ता के करीबी रिश्ते उन्हें चुनाव में एक प्रभावी प्रत्याशी बना रहे हैं। राय का गठबंधन टूटने के बावजूद, उनकी मजबूत स्थिति और भूमिहार वोटरों का समर्थन उन्हें एक सशक्त बागी के रूप में प्रस्तुत करता है, जो भाजपा के लिए गंभीर चुनौती बन सकता है।
विनोद सिंह की नाराजगी और सत्ता पक्ष का समर्थन
हुसैनाबाद से बागी नेता विनोद सिंह भी चुनाव मैदान में डटे हुए हैं। उनकी नाराजगी भाजपा के प्रत्याशी और विधायक कमलेश सिंह से है। सूत्रों का कहना है कि भाजपा से असंतुष्ट होने के अलावा, सत्ता पक्ष से जुड़े बड़े नेताओं ने भी विनोद सिंह को चुनाव में बने रहने का समर्थन दिया है, जिससे उनकी स्थिति और मजबूत हो गई है। गुमला में मिसिर कुजूर का भी यही हाल है, जिनके चुनाव लड़ने के पीछे सत्ता पक्ष का समर्थन बताया जा रहा है।
भाजपा का बागियों पर नियंत्रण: अधिकतर को मना लिया गया
भाजपा ने अधिकांश बागियों को मनाने में सफलता पाई है। केवल दो-तीन सीटों को छोड़कर अब अन्य सीटों पर बागी उम्मीदवार पार्टी को नुकसान नहीं पहुंचा पाएंगे। बागियों को मनाने के लिए भाजपा के महामंत्री बीएल संतोष ने जो टास्क हिमंता विस्व सरमा को सौंपा था, उसे काफी हद तक पूरा कर लिया गया है। हिमंता के नेतृत्व में भाजपा ने चुनाव से पहले डैमेज कंट्रोल कर लिया है, जिससे चुनावी मैदान में भाजपा के खिलाफ खड़े बागियों का असर सीमित रह गया है।
भाजपा का डैमेज कंट्रोल: चुनावी तैयारी में बढ़त
चुनाव से पहले भाजपा ने बागियों की नाराजगी को दूर करके एक सकारात्मक माहौल तैयार कर लिया है। हिमंता विस्व सरमा के सक्रिय प्रयासों के बाद पार्टी ने अधिकांश सीटों पर डैमेज कंट्रोल कर लिया है। अब केवल कुछ ही सीटों पर भाजपा को बागियों की चुनौती का सामना करना होगा, जबकि बाकी सीटों पर स्थिति पार्टी के पक्ष में दिखाई दे रही है।