दशकों से जल समझौतों को ठेंगा दिखा रहा बंगाल, पानी बढ़ने पर तेवर दिखाना सरासर रंगदारी
रांची : झारखण्ड को हेमन्त दादा से ये उम्मीद न थी| इन दिनों पूरे फार्म में हैं, केंद्र की मोदी सरकार और भाजपा – आरएसएस को गरियाने का कोई मौका नहीं छोड़ते|
एक – एक दिन में चार – चार कार्यक्रम कर रहे हैं और हर कार्यक्रम में केंद्र की सरकार और भाजपा को पंचम सुर में खरी – खोटी सुनाते हैं|
ऐसे में जब मैथन और पंचेत डैम के फाटक खुलने से बंगाल में पानी बढ़ा और बंगाल की सीएम ममता बनर्जी हुक्का – पानी लेकर झारखण्ड पर चढ़ दौड़ीं, झारखण्ड के मालवाहक वाहनों को बंगाल बार्डर पर रोक दिया तो लगा कि दीदी की इस रंगदारी का अपने हेमन्त दादा भी करारा जवाब देंगे|
हेमन्त दादा के पास कहने को काफी कुछ था भी| आज थोड़ा सा पानी बढ़ जाने पर बिलबिलाने वाला बंगाल आम दिनों में कभी भी झारखण्ड को उसके हक़ का पानी नहीं देता|
दशकों से बिहार – बंगाल और डीवीसी के बीच के त्रिपक्षीय जल समझौतों को ठेंगा दिखा रहा है|
बंगाल की इस बेईमानी को साबित करने के लिए अकेले मसानजोर डैम का उदाहरण काफी है|
झारखण्ड और पश्चिम बंगाल की सीमा पर स्थित मसानजोर बांध विगत कुछ वर्षों से झारखण्ड और पश्चिम बंगाल के बीच विवाद का विषय बना हुआ है।
बांध निर्माण के पूर्व एवं बाद में दोनों राज्यों के बीच हुए समझौते को बंगाल सरकार ठेंगा दिखा रही है और खामियाजा भुगत रही है संथालपरगना की जनजातीय बहुल आबादी।
मसानजोर डैम: विवाद की जड़

बिहार और बंगाल के बीच 12 मार्च 1949 को मयूराक्षी जल बंटवारा पर पहला समझौता हुआ था।
करार दस बिंदुओं पर हुआ था, बंगाल सरकार की तरफ से करार की एक भी शर्त पूरी नहीं की गयी।
करार में मसानजोर जलाशय से तत्कालीन बिहार (अब झारखंड) में 81000 हेक्टेयर जमीन की खरीफ फसल और 1050 हेक्टेयर पर रबी फसल की तथा पश्चिम बंगाल में 226720 हेक्टेयर खरीफ और 20240 हेक्टेयर रबी फसलों की सिंचाई होने का प्रावधान किया गया था|
समझौता के अनुसार निर्माण, मरम्मत तथा विस्थापन का पूरा व्यय बंगाल सरकार को वहन करना है। इतना ही नहीं विस्थापितों को सिंचित जमीन भी देनी थी।
दूसरा समझौता 19 जुलाई 1978 को हुआ था, मसानजोर डैम को लेकर बंगाल और बिहार सरकार के बीच एक करार हुआ था। लेकिन, इस बार भी बंगाल सरकार की तरफ से करार की एक भी शर्त पूरी नहीं की गयी।
मसानजोर डैम का जलस्तर कभी भी 363 फीट से नीचे नहीं आये, इसका ध्यान बंगाल सरकार को पानी लेते समय हर हालत में रखना था, ताकि झारखंड के दुमका की सिंचाई प्रभावित नहीं हो।
बंगाल सरकार को एक अतिरिक्त सिद्धेश्वरी-नूनबिल डैम बनाना था, जिसमें झारखंड के लिए डैम के ऊपरी जलग्रहण क्षेत्र का 10000 एकड़ फीट पानी दुमका जिला के रानीश्वर क्षेत्र के लिए रिजर्व रखना था।
मसानजोर डैम के पानी का जलस्तर हर साल 363 फीट से काफी नीचे आ जाता है, क्योंकि बंगाल डैम से ज्यादा पानी लेता है। मसानजोर डैम से दुमका जिला की सिंचाई के लिए पंप लगे थे, वे हमेशा खराब रहते हैं।
बंगाल सरकार ने करार के मुताबिक़ न तो दो नए डैम बनाए, न बिजली दे रही है और न पानी।
मसानजोर बाँध में झारखंड के दुमका जिला की 19000 एकड़ जमीन सन्निहित है, 12000 एकड़ खेती लायक जमीन जलमग्न है, 144 मौजे समाहित हैं।
सबसे ज्यादा तकलीफ में वही आदिवासी वर्ग है जिसकी हिमायत के दावे हेमन्त सरकार द्वारा रोज कई बार किये जाते हैं। इसके बावजूद बंगाल की दीदी की रंगदारी पर हेमन्त दादा चुप हैं।
भाजपा ने मसानजोर डैम जल समझौते पर उठाई आवाज, विपक्ष की चुप्पी पर सवाल
भाजपा इस विषय पर हमेशा हमलावर रही है| लोकसभा में भाजपा सांसद निशिकांत दुबे और राज्यसभा में महेश पोद्दार ने मजबूती से मसानजोर डैम जल समझौते के बंगाल सरकार द्वारा उल्लंघन का मुद्दा मजबूती से उठाया| लेकिन झामुमो, कांग्रेस या राजद के किसी सांसद, विधायक, मंत्री या मुख्यमंत्री ने कभी इस मसले पर ध्यान दिया ही नहीं|
चर्चा है कि फ़िलहाल भाजपा से लड़ने के लिए तृणमूल कांग्रेस और झामुमो मिलकर चलना चाहते हैं और इस मसले पर दीदी से पंगा लेकर दादा अपना एक हिमायती नहीं खोना चाहते|
कायदे से इसकी फिकर दीदी को भी करनी चाहिए थी, लेकिन उन्होंने तो कोई लिहाज़ नहीं किया|
दीदी ने तो अपने “माय, माटी, मानुष” के लिए रिश्तों का लिहाज़ किये बिना हमला कर दिया लेकिन दादा ने रिश्तों का लिहाज़ करने के लिए अपने “जल – जंगल – जमीन” को दांव पर क्यों लगा दिया? लाख टके का सवाल तो यही है|
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