झारखंड में नक्सलवाद को समाप्त करने की दिशा में राज्य सरकार की बड़ी पहल सामने आई है। झारखंड सरकार ने आत्मसमर्पण करने वाले 23 नक्सलियों और उग्रवादियों को राज्य की आत्मसमर्पण एवं पुनर्वास नीति के तहत आर्थिक सहायता राशि प्रदान की है। गृह, कारा एवं आपदा प्रबंधन विभाग की सचिव द्वारा इस संबंध में आदेश जारी किए गए हैं। सरकार का यह कदम न केवल नक्सल हिंसा को कम करने की दिशा में एक निर्णायक कदम माना जा रहा है, बल्कि मुख्यधारा में लौटने वालों के लिए एक नई शुरुआत का अवसर भी है।
आत्मसमर्पण करने वाले 23 नक्सलियों को मिली आर्थिक सहायता
राज्य सरकार की नीति के तहत इन 23 नक्सलियों को उनके दर्जे और आत्मसमर्पण के समय की परिस्थितियों के अनुसार आर्थिक सहायता राशि दी गई है। इनमें कुछ शीर्ष उग्रवादी भी शामिल हैं जो लंबे समय से सुरक्षा एजेंसियों की निगरानी सूची में थे।
- उम्रेश यादव : ₹2 लाख
- जीवन कंडुलना : ₹2.30 लाख
- बोयदा पाहन : ₹30 हजार
- बिरसा मुंडू : ₹30 हजार
- गोंदा पाहन : ₹30 हजार
- गोपाल गंझू : ₹30 हजार
- बिरसा मुंडा : ₹30 हजार
- कारगिल यादव : ₹30 हजार
- संतोष गंझू : ₹1.18 लाख
- राहुल गंझू : ₹1.07 लाख
- मनेश्वर गंझू : ₹1.07 लाख
- विनोद दास : ₹3 लाख
- गणेश लोहरा : ₹3 लाख
- तिलकमेन साहू : ₹2.50 लाख
- ललित बड़ाइक : ₹2.50 लाख
- राजो सिंह : ₹2.50 लाख
- दीपक मांझी : ₹2.50 लाख
- सियोजन टोपनो : ₹2.50 लाख
- कमल सिंह : ₹2.50 लाख
- महेश्वर सिंह : ₹2.50 लाख
- संतोष सिंह : ₹2.50 लाख
- विनोद मुंडा : ₹2.50 लाख
- आकाश सिंह : ₹2.50 लाख
गृह विभाग के अधिकारियों के अनुसार, इन सभी नक्सलियों ने आत्मसमर्पण के बाद पुनर्वास प्रक्रिया पूरी की है और अब सामान्य जीवन की ओर लौटने की दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं।
नक्सल प्रभावित जिलों में कमी
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, झारखंड में नक्सलवाद की समस्या 95 प्रतिशत तक नियंत्रित (Naxalism Control in Jharkhand) हो चुकी है। जहां कभी राज्य के 22 जिले नक्सल प्रभावित थे, वहीं अब केवल पांच जिले — गिरिडीह, गुमला, लातेहार, लोहरदगा और पश्चिमी सिंहभूम — ही इस श्रेणी में बचे हैं।
गृह मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक, देश के 12 सबसे नक्सल प्रभावित जिलों की सूची में अब झारखंड का केवल एक जिला, पश्चिमी सिंहभूम शामिल है। यह दर्शाता है कि राज्य में नक्सल विरोधी अभियान और आत्मसमर्पण नीति कितनी प्रभावी साबित हो रही है।
आत्मसमर्पण नीति का उद्देश्य
राज्य की आत्मसमर्पण एवं पुनर्वास नीति का उद्देश्य नक्सलियों को हिंसा के रास्ते से हटाकर मुख्यधारा में शामिल करना है। इस नीति के तहत आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों को न केवल वित्तीय सहायता दी जाती है, बल्कि उन्हें शिक्षा, प्रशिक्षण और रोजगार के अवसर भी उपलब्ध कराए जाते हैं।
पुलिस सूत्रों के अनुसार, आत्मसमर्पण करने वाले कई नक्सली अब सुरक्षा बलों के मार्गदर्शन में समाज सेवा और ग्रामीण विकास कार्यों में हिस्सा ले रहे हैं।
सरकार की रणनीति और परिणाम
झारखंड सरकार ने हाल के वर्षों में “ऑपरेशन समर्पण” अभियान के तहत नक्सल प्रभावित इलाकों में कई सामाजिक योजनाएं शुरू की हैं। इसके तहत गांवों में सड़क, बिजली, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाएं बढ़ाई जा रही हैं, ताकि नक्सलवाद की जड़ — सामाजिक उपेक्षा और गरीबी — को खत्म किया जा सके।
राज्य पुलिस और सीआरपीएफ की संयुक्त कार्रवाई से पिछले दो वर्षों में 100 से अधिक नक्सली या तो गिरफ्तार किए गए या आत्मसमर्पण कर चुके हैं।
विशेषज्ञों की राय
सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि झारखंड की आत्मसमर्पण नीति देश में सबसे सफल मॉडल में से एक बन रही है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने न केवल नक्सल विरोधी अभियान को सख्ती से जारी रखा, बल्कि सामाजिक पुनर्वास पर भी समान रूप से ध्यान दिया, जिससे हिंसा में कमी आई है।
भविष्य की योजना
सरकार का लक्ष्य अगले दो वर्षों में राज्य से नक्सलवाद का पूरी तरह सफाया करना है। इसके लिए सुरक्षा बलों की तैनाती बढ़ाने, तकनीकी निगरानी को मजबूत करने और सामाजिक योजनाओं को और विस्तार देने की दिशा में काम किया जा रहा है।
