रांची – झारखंड सरकार द्वारा विस्थापन एवं पुनर्वास आयोग गठन कार्य एवं दायित्व नियमावली 2025 को स्वीकृति दिए जाने पर माकपा (CPM) ने इसे एक सकारात्मक पहल बताया है। पार्टी के अनुसार यह कदम राज्य में लंबे समय से उपेक्षित रहे लाखों विस्थापितों के अधिकारों की रक्षा की दिशा में अहम साबित हो सकता है।
कैबिनेट की मंजूरी और नियमावली की तैयारी
सीपीएम ने बताया कि जुलाई 2024 में ही विस्थापन आयोग गठन के प्रस्ताव को कैबिनेट से मंजूरी मिल चुकी थी। हालांकि, आयोग की नियमावली तैयार होने में लगभग एक वर्ष का समय लगा और अब जाकर इसे अंतिम रूप दिया गया है। पार्टी ने उम्मीद जताई कि आयोग के गठन से विस्थापितों की समस्याओं को संस्थागत ढांचे के तहत समाधान मिल सकेगा।
झारखंड में विस्थापन बनी रही बड़ी समस्या
सीपीएम राज्य सचिव प्रकाश विप्लव ने कहा कि झारखंड के गठन से पहले से ही विस्थापन राज्य की सबसे गंभीर समस्या रही है।
खनन कार्य, सिंचाई परियोजनाएं, बड़े बांध, औद्योगिक इकाइयां, वन्यजीव अभयारण्य और कॉरिडोर निर्माण जैसे कारणों से लाखों लोग अपनी जमीन और आवास से वंचित हुए।
उन्होंने कहा कि इनमें से अधिकांश विस्थापित आज भी बुनियादी सुविधाओं और अधिकारों से वंचित हैं। विकास के पूंजीवादी मॉडल ने खासकर आदिवासी, गरीब रैयत और किसान समुदाय को गहरी प्रभावित किया है।
विस्थापन आयोग को कानूनी अधिकार देने की मांग
माकपा ने राज्य सरकार से मांग की कि विस्थापन आयोग को केवल परामर्शी समिति के रूप में न रखा जाए। पार्टी चाहती है कि आयोग को कानूनी अधिकारों से संपन्न दर्जा दिया जाए ताकि विस्थापितों की समस्याओं का समयबद्ध निपटारा किया जा सके और उन्हें न्याय मिल सके।
तीसरी लहर का विस्थापन और नई चुनौतियां
सीपीएम ने चेतावनी दी है कि केंद्र सरकार द्वारा निजी कोल ब्लॉकों की नीलामी से झारखंड में विस्थापन की तीसरी लहर शुरू हो चुकी है। ऐसे में आयोग का गठन केवल औपचारिकता न रहकर, एक सक्रिय और अधिकार संपन्न संस्था के रूप में सामने आना जरूरी है। पार्टी ने कहा कि आयोग जल्द से जल्द कामकाज शुरू करे ताकि प्रभावित परिवारों को राहत और पुनर्वास सुनिश्चित किया जा सके।