नई दिल्ली, 27 अक्टूबर 2025। सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को उस बहुचर्चित मामले की सुनवाई हुई, जिसमें 6 अक्टूबर 2025 को वकील राकेश किशोर ने मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) बी.आर. गवई पर जूता फेंकने का प्रयास किया था। इस घटना से न्यायपालिका की गरिमा को लेकर व्यापक चर्चा हुई थी।
पीठ का निर्णय: अवमानना नोटिस जारी करने से इनकार
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने आज की सुनवाई में वकील राकेश किशोर के खिलाफ आपराधिक अवमानना की कार्रवाई शुरू करने से इनकार कर दिया।
कोर्ट ने कहा कि —
“हम ऐसे व्यक्ति को अनावश्यक महत्व नहीं देना चाहते। न्यायालय की गरिमा उसके संयम और संतुलन में निहित है।”
साथ ही, पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि यह मामला व्यक्तिगत नहीं, बल्कि संस्थागत गरिमा से जुड़ा है, इसलिए कोर्ट भविष्य में ऐसे मामलों की पुनरावृत्ति रोकने के उपायों पर विचार करेगी।
सुनवाई के दौरान प्रमुख बिंदु
- अवमानना याचिका: सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) ने राकेश किशोर के खिलाफ आपराधिक अवमानना की याचिका दायर की थी, जिसमें कहा गया था कि यह घटना न्यायपालिका की गरिमा पर सीधा प्रहार है।
- अटॉर्नी जनरल की सहमति: अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने इस याचिका के लिए अपनी सहमति दी थी।
- मुख्य न्यायाधीश का रुख: सीजेआई बी.आर. गवई ने पहले ही इस घटना को “भूला हुआ अध्याय” बताते हुए कहा था कि वे इसे लेकर किसी भी कानूनी कार्रवाई के पक्ष में नहीं हैं।
- पीठ की टिप्पणी: न्यायालय ने कहा कि यदि इस मामले को अत्यधिक तवज्जो दी गई तो यह सोशल मीडिया पर अनावश्यक चर्चा को जन्म देगा।
घटना का पृष्ठभूमि
यह मामला 6 अक्टूबर 2025 की उस घटना से संबंधित है जब सुप्रीम कोर्ट में खजुराहो स्थित भगवान विष्णु की एक प्रतिमा से जुड़ी याचिका पर सुनवाई के दौरान वकील राकेश किशोर ने मुख्य न्यायाधीश पर जूता फेंकने का प्रयास किया था।
घटना के बाद सुरक्षाकर्मियों ने वकील को तुरंत हिरासत में लिया था। बाद में सीजेआई ने अपने संयम का परिचय देते हुए कहा था कि “इस तरह की घटनाओं से न्यायपालिका की गरिमा कम नहीं होती।”
सोशल मीडिया पर निवारक कदम
सुनवाई के दौरान पीठ ने यह चिंता व्यक्त की कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर इस तरह की घटनाओं का महिमामंडन न केवल गलत संदेश देता है, बल्कि यह न्यायपालिका की प्रतिष्ठा को भी प्रभावित करता है।
अदालत ने कहा कि भविष्य में ऐसे कृत्यों को रोकने के लिए निवारक उपायों और दिशा-निर्देशों पर विचार किया जाएगा।
अगली सुनवाई एक सप्ताह बाद
पीठ ने मामले की अगली सुनवाई एक सप्ताह बाद तय की है।
उस दौरान अदालत यह विचार करेगी कि सोशल मीडिया पर न्यायालय-विरोधी या अपमानजनक सामग्री के प्रसार को रोकने के लिए किन ठोस कदमों की आवश्यकता है।
