झारखंड में आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए सियासी माहौल गर्म हो गया है।
इसी बीच भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को घेरने के लिए अपनी रणनीति बना ली है।
पार्टी ने एक प्रभावी चुनावी अभियान की शुरुआत की है, जिसका मुख्य उद्देश्य सोरेन सरकार को घेरना है।
बीजेपी के बड़े नेताओं का बढ़ता हस्तक्षेप

बीजेपी ने चुनावी अभियान को मजबूती देने के लिए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को झारखंड भेजा है, जहां वह भाजपा की परिवर्तन यात्रा की शुरुआत कर रहे हैं।
इस यात्रा का उद्देश्य राज्य में बीजेपी को फिर से मजबूत करना है।
साथ ही, केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान और असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा भी लगातार झारखंड का दौरा कर रहे हैं, जो बीजेपी के चुनावी अभियान को नई ऊर्जा दे रहे हैं।
हेमंत सरकार की लोकप्रियता पर चुनौती
कुछ समय पहले तक ऐसा लग रहा था कि हेमंत सोरेन की लोकलुभावन योजनाएं और घोषणाएं बीजेपी को चुनावी मैदान में कमजोर बना देंगी।
परंतु, बीजेपी के शीर्ष नेताओं के हस्तक्षेप और चुनावी अभियान के बाद स्थितियां बदलती नजर आ रही हैं।
अब यह मुकाबला एकतरफा नहीं रह गया है, बल्कि दोनों पार्टियों के बीच कांटे की टक्कर होने की उम्मीद है।
बीजेपी के मुद्दे और रणनीति
केंद्रीय योजनाओं का सहारा
इस बार बीजेपी राज्य में सत्ता में नहीं है, इसलिए उसे अपने पिछले कामकाज के आधार पर वोट मांगना थोड़ा मुश्किल हो सकता है।
हालांकि, पार्टी केंद्रीय योजनाओं का जिक्र कर जनता को लुभाने की कोशिश कर रही है।
इसके अलावा, पार्टी ने लोकसभा चुनाव के दौरान उठाए गए मुद्दों को फिर से जनता के सामने रख रही है।
बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठ पर फोकस
बीजेपी का सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठ है।
पार्टी इस मुद्दे को पूरी मजबूती से उठा रही है और यह कह रही है कि अगर राज्य में इंडिया ब्लॉक की सरकार फिर से आई, तो घुसपैठ और बढ़ेगी।
भाजपा इस मुद्दे के साथ-साथ मुस्लिम तुष्टिकरण और राज्य की बदलती जनसंख्या संरचना (डेमोग्राफी) को भी चुनावी मैदान में मुख्य मुद्दा बना रही है।
असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने इस मुद्दे को अपने बयानों का हिस्सा बना लिया है और हर सभा में इसे उठाते हैं।
हाईकोर्ट का समर्थन
इस मुद्दे पर बीजेपी को झारखंड हाईकोर्ट से भी समर्थन मिला है।
हाईकोर्ट ने राज्य में घुसपैठ के मुद्दे पर सख्त रुख अपनाया है, जबकि राज्य सरकार इस समस्या को स्वीकार करने से इनकार कर रही है।
हाईकोर्ट ने राज्य के आला अधिकारियों से रिपोर्ट मांगी है, पर राज्य सरकार ने इस मुद्दे पर मात्र खानापूर्ति की है, जिससे कोर्ट नाराज है। इससे बीजेपी के आरोपों को और बल मिल रहा है।
हेमंत सोरेन की वादाखिलाफी बन रही है मुद्दा
बीजेपी हेमंत सोरेन की वादाखिलाफी को भी चुनावी मुद्दा बना रही है।
2019 के विधानसभा चुनाव के दौरान हेमंत सोरेन ने युवाओं को रोजगार, बेरोजगारों को भत्ता और 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीय नीति लागू करने का वादा किया था।
लेकिन, ये वादे अब तक पूरे नहीं हो पाए हैं और कई योजनाएं विवादों में फंसी रही हैं।
बीजेपी इसे जनता के सामने एक बड़े मुद्दे के रूप में पेश कर रही है।
परिवर्तन यात्रा और आदिवासी वोट
बीजेपी ने परिवर्तन यात्रा शुरू की है, जिसका मुख्य उद्देश्य आदिवासी वोट को अपने पक्ष में करना है।
झारखंड में कुल 28 आदिवासी सीटें हैं, जिसमें से पिछले चुनाव में बीजेपी केवल दो सीटें ही जीत पाई थी। इस बार पार्टी की पूरी कोशिश है कि आदिवासी वोटर उसकी तरफ झुके।
बीजेपी के पास अब आदिवासी नेताओं की कमी नहीं है।
बाबूलाल मरांडी, अर्जुन मुंडा, मधु कोड़ा और चंपई सोरेन जैसे बड़े आदिवासी नेता बीजेपी के साथ हैं।
इसलिए पार्टी का मुख्य फोकस संथाल और कोल्हान क्षेत्रों पर है, जहां सबसे ज्यादा आदिवासी सीटें हैं। यही कारण है कि पार्टी के बड़े नेताओं ने अपनी पहली सभाएं इन क्षेत्रों में की हैं।
निष्कर्ष
बीजेपी ने अपनी रणनीति के तहत झारखंड में सियासी माहौल को अपने पक्ष में करने की पूरी कोशिश की है।
पार्टी की रणनीति और चुनावी मुद्दे हेमंत सोरेन को कड़ी चुनौती दे रहे हैं।
अब देखना यह होगा कि जनता किसे अपना समर्थन देती है, और आने वाले चुनाव में कौन सी पार्टी बाजी मारती है।
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