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    Home » कोयला कंपनियों पर बकाये पर राजनीति कर रही हेमन्त सरकार, यूपीए की तुलना में मोदी सरकार ने दिखाई है ज्यादा संवेदनशीलता
    Jharkhand

    कोयला कंपनियों पर बकाये पर राजनीति कर रही हेमन्त सरकार, यूपीए की तुलना में मोदी सरकार ने दिखाई है ज्यादा संवेदनशीलता

    LokchetnaBy LokchetnaOctober 1, 2024No Comments28 Views
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    2014 में केंद्र की यूपीए सरकार ने ठेंगा दिखाया, 2020 में भाजपा सरकार ने दी रजामंदी-250 करोड़ दिए भी

    रांची: झारखण्ड की मौजूदा हेमन्त सरकार लगातार और बार – बार केंद्र के पास झारखण्ड के बकाये का मुद्दा उठाकर यह साबित करने की कोशिश करती है कि केंद्र की मोदी सरकार झारखण्ड के साथ सौतेला व्यवहार करती है|

    जब भी केंद्र के पास झारखण्ड के बकाये का जिक्र होता है तो ख़ास तौर पर केंद्र सरकार के अधीन कार्यरत कोयला कंपनियों के पास जमीन के सरफेस रेंट एवं लगान के बकाये का हवाला दिया जाता है|

    यह सच है कि झारखण्ड ने देश को अपनी जमीन के भीतर से कोयला, लोहा, ताम्बा, बॉक्साईट, युरेनियम आदि देकर देश की समृद्धि में योगदान दिया है और इस लिहाज से इस राज्य को उसका वाजिब हक़ मिलना भी चाहिए|

    लेकिन क्या वाकई हेमन्त सरकार और झारखण्ड की सत्ता में साझीदार कांग्रेस, झामुमो और राजद इस मसले पर ईमानदार और संवेदनशील हैं?

    “सियासी खबर” की पड़ताल बताती है कि इस मुद्दे पर झामुमो, कांग्रेस और राजद केवल कोरी राजनीति कर रहे हैं और जब उनके पास झारखण्ड को उसका वाजिब हक़ देने का मौका था तो उन्होंने पूरी बेशर्मी और बेरुखी से झारखण्ड को ठेंगा दिखा दिया था|

    कोयला कंपनियों पर भूमि लगान के हजारों करोड़ के बकाये के मामले में झारखण्ड सरकार में शामिल झामुमो, कांग्रेस और राजद की कुटिलता खुलकर सामने आ गयी है|

    राज्यसभा के पूर्व सांसद महेश पोद्दार को लिखे केन्द्रीय कोयला मंत्री के पत्र से सच्चाई आयी सामने

    भारत सरकार की कोयला कंपनियों पर राज्य सरकार पर बकाये की जानकारी के लिए राज्यसभा के पूर्व सांसद महेश पोद्दार ने केन्द्रीय कोयला मंत्री को पत्र लिखा था जिसके प्रत्युत्तर में कोयला मंत्री ने पत्र लिखकर जो जानकारी दी है उससे राज्य सरकार के एक – एक झूठ का खुलासा हो गया है|

    श्री पोद्दार ने 21 अक्टूबर 2020 को राज्य सरकार द्वारा कोयला कम्पनियों के ऊपर हजारों करोड़ रूपये बकाया होने के दावे की सत्यता जानने के लिए तत्कालीन केन्द्रीय कोयला मंत्री श्री प्रह्लाद जोशी को पत्र लिखा था|

    24 फरवरी 2021 को केन्द्रीय कोयला मंत्री ने जो जानकारी पत्र के माध्यम से उपलब्ध करायी है उसके मुताबिक़ यह मामला बहुत पुराना है|

    वर्तमान मुख्यमंत्री श्री हेमंत सोरेन से पूर्व अविभाजित बिहार की सरकार ने 1999 में और राज्य विभाजन के बाद 2002 तथा 2007 में झारखण्ड सरकार ने केंद्र के समक्ष ये मामला उठाया था|

    2002 में श्री बाबूलाल मरांडी भाजपा नीत सरकार के मुख्यमंत्री थे और 2007 में निर्दलीय श्री मधु कोड़ा मुख्यमंत्री थे और सरकार झामुमो, कांग्रेस और राजद के समर्थन से चल रही थी| यानि वर्तमान सरकार का यह दावा कि पहली बार राज्य की किसी सरकार ने राज्य के अधिकार की चिंता की है, झूठा है|

    तत्कालीन केन्द्रीय कोयला मंत्री श्री प्रहलाद जोशी ने अपने पत्र में एक बड़ा खुलासा भी किया है|

    भारत सरकार की कोयला कंपनियों पर लगान बकाये से सम्बंधित झारखण्ड सरकार के दावे को भारत सरकार के तत्कालीन कोयला मंत्री ने 6 जनवरी 2014 को सिरे से खारिज कर दिया था|

    यूपीए सरकार के तत्कालीन कोयला मंत्री ने झारखण्ड के तत्कालीन मुख्यमंत्री को पत्रांक 49029/5/2013-पीआरआईडब्ल्यू – I के माध्यम से साफ़ कहा था कि – “ कोल बीयरिंग एक्ट यानि सीबीए अधिनियम, 1957 की धारा – 10 के अनुसार, धारा 9 के तहत घोषणा के सरकारी राजपत्र में प्रकाशन पर, यथास्थिति, भूमि या भूमि में या उस पर के अधिकार समस्त विल्लंगमों से मुक्त होकर आत्यांतिक रूप से केन्द्रीय सरकार में निहित होंगे|

    उपर्युक्त प्रावधानों के आधार पर, कोयला खानों या कोकिंग कोयला खानों के सम्बन्ध में केंद्र सरकार के अधिकारों का उपयोग सीबीए अधिनियम, 1957 की धारा 11 के आधार पर सरकारी कम्पनी द्वारा किया जाता है|

    चूंकि न तो केंद्र सरकार और न ही सरकारी कम्पनी, जिनमें केंद्र सरकार के अधिकार निहित हैं, राज्य सरकार के पट्टेदार हैं, इस तरह की भूमि पर किसी भी तरह के सतह किराये या भूमि के किराये के भुगतान का प्रश्न ही नहीं उठता|

    जहां तक सीबीए अधिनियम, 1957 में धारा 18 क का सम्बन्ध है, यह खंड राज्य सरकार द्वारा दिए गए खनन पट्टे के तहत रॉयल्टी के भुगतान की सुविधा देता है| कोयला कम्पनियां राज्य सरकार को समय-समय पर निर्धारित ऐसी रॉयल्टी का भुगतान कर रही है|”

    उल्लेखनीय है कि जब कोयला खदानों के ऊपर भूमि लगान बकाये के मसले पर ठेंगा दिखाते हुए, टका सा जवाब दे दिया था, तब केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्ववाली यूपीए गठबंधन सत्तासीन था और झारखण्ड का नेतृत्व श्री हेमंत सोरेन ही कर रहे थे, कांग्रेस और आरजेडी तब भी सरकार में शामिल थे|

    मोदी सरकार का झारखंड के प्रति उदार और संवेदनशील दृष्टिकोण

    इस मामले में श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र की भाजपा सरकार को झारखण्ड के प्रति ज्यादा उदार और संवेदनशील कहा जा सकता है|

    दिनांक 30 जुलाई 2020 को झारखण्ड के मुख्यमंत्री के साथ रांची आकर तत्कालीन केन्द्रीय कोयला मंत्री ने एक बैठक की थी जिसमे झारखण्ड सरकार को भूमि लागत के भुगतान सहित विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की गयी थी|

    इस बैठक में राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और उस समय भारत सरकार जनजातीय मामलों के मंत्री का दायित्व संभाल रहे श्री अर्जुन मुंडा भी शामिल थे|

    केन्द्रीय कोयला मंत्री ने पूर्ववर्ती यूपीए सरकार के नकारात्मक रवैये की जगह संवेदनशील और उदार रवैया दिखाया और बैठक में सैद्धांतिक रूप से यह निर्णय लिया गया कि सीबीए अधिनियम के तहत अधिग्रहित सरकारी भूमि का भुगतान कृषि भूमि के वर्तमान सर्किल दर के अनुसार किया जाय| सीसीएल द्वारा अधिग्रहित भूमि के संयुक्त सत्यापन के बाद राज्य सरकार को मुआवजे का भुगतान किया जायेगा|

    इसके साथ-साथ यह निर्णय भी लिया गया था कि सीसीएल द्वारा अधिग्रहित सरकारी भूमि का ठीक परिमाप निर्धारित करने के लिए राज्य सरकार सीआईएल/सीसीएल के अधिकारियों के साथ एक समिति गठित करे|

    अंतरिम रूप से उसी बैठक के दौरान भारत सरकार के कोयला मंत्रालय द्वारा 250 करोड़ का भुगतान किया भी गया|

    केन्द्रीय कोयला कंपनियों पर बकाये का मामला वाजिब है या नहीं, ये तो जानकार तय करेंगे और उपयुक्त फोरम पर तय होगा| पर केन्द्रीय कोयला मंत्री के पत्र से स्पष्ट है कि केंद्र में सत्तासीन रही कांग्रेस या यूपीए की सरकारों ने कभी भी झारखण्ड की मांग को इज्जत नहीं दी और ठेंगा दिखाकर टरका दिया|

    जबकि भाजपा की सरकार ने पूर्ववर्ती यूपीए सरकार की दलीलों की आड़ न लेकर झारखण्ड के प्रति भावनात्मक लगाव को प्राथमिकता दी| न सिर्फ भुगतान के लिए राजी हुई, बल्कि 250 करोड़ देकर शुरुआत की, इस बात का प्रमाण दिया कि झारखण्ड की मांग के प्रति केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार संवेदनशील रवैया रखती है|

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