रांची : सियासत का एक अचूक फंडा है – चतुर खिलाड़ी वही है जो अपने मुक़ाबिल खिलाड़ी को भी अपनी बिसात पर खेलने को मजबूर कर दे|
झारखण्ड में विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा के सह प्रभारी बनकर आये असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने साबित कर दिया है कि वे इस फंडे के सधे फनकार हैं|
केवल कुछ दिनों की फील्डिंग में ही हिमंत ने सूबे का सियासी माहौल बदल दिया है|
कुछ दिनों पहले तक अनिर्णय, असमंजस और अनिश्चितता से जूझ रही भाजपा आत्मविश्वास से लबरेज है और अपने आपको रेस में काफी आगे मान रहा झामुमो – कांग्रेस – राजद गठबंधन डिफेंसिव दिखने लगा है|
दरअसल अपनी कार्यशैली से हिमंत ने सूबे की सियासी चर्चाओं में “हेमन्त बनाम हिमंत” का नैरेटिव बहुत मजबूती से सेट कर दिया है| अब जैसा कि लाजिमी है लोग बतौर मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा और हेमन्त सोरेन के कामकाज की तुलना करने लगे हैं|
अब ये मानने में तो भाजपा के धुर विरोधियों को भी गुरेज नहीं कि मुख्यमंत्री के तौर पर हिमंत की तुलना में हेमन्त कतई फिसड्डी पाये जाते हैं| उपलब्धियों के लिहाज से भी और समस्याओं के समाधान की दक्षता के हिसाब से भी|
रोजगार के सवाल पर हिमंत हैं काफी आगे

असम और झारखण्ड की मौजूदा सरकारों के कामकाज की तुलना करनी हो तो रोजगार लाजिमी तौर पर पहली कसौटी मानी जाती है| बतौर मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने बड़े वादे नहीं किये लेकिन जो कहा उसपर सौ टका खरे उतरे|
मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने असम सरकार के रोजगार देने के वादों को पूरा करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए संविदा और राज्य पूल शिक्षकों को 23,956 नियुक्ति पत्र सौंपे।
2021 में हिमंत 1 लाख सरकारी नौकरियों का वादा करके सत्ता में आए जिसे पूरा करते हुए असम सरकार ने अब तक 1,24,345 से ज्यादा नौकरियां दी है। हिमंत ने कहा है कि मई 2025 तक हम 50,000 और नौकरियां पैदा करेंगे, जिससे कुल नौकरियां 2 लाख हो जाएंगी।
इनमें से प्रत्येक नौकरी भ्रष्टाचार के एक भी उदाहरण के बिना प्रदान की गई है।
दूसरी तरफ अगर बात हेमन्त सोरेन के सरकार की करें तो हर साल पांच लाख नौकरी देने और नौकरी न दे पाने की स्थिति में बेरोजगारी भत्ता देने का वादा कर सत्ता में आये हेमन्त सोरेन अबतक एक लाख का आंकड़ा भी नहीं छू पाये हैं|
नौकरी से वंचित बेरोजगार युवाओं को बेरोजगारी भत्ता तो नहीं मिला अलबत्ता हर बहाली में भ्रष्टाचार और उसकी खिलाफत पर बर्बर पिटाई का तोहफा जरुर मिला|
फिलहाल जारी उत्पाद सिपाही की बहाली के क्रम में अबतक नियुक्ति पत्र तो किसी को नहीं मिला लेकिन करीब डेढ़ दर्जन अभ्यर्थियों को मौत की सौगात जरुर मिल गयी|
जनजातीय अस्मिता के मुद्दे पर भी पिछड़ते दिखते हैं हेमन्त
असम और झारखण्ड दोनों प्रदेशों में जनजातीय समुदाय की अच्छी खासी आबादी है|
जनजातीय और स्थानीय संस्कृति का संरक्षण और विकास दोनों प्रदेशों के आदिवासियों और मूल निवासियों की प्रमुख मांग है|
लेकिन इस मोर्चे पर भी प्रतिबद्धता दिखाकर हिमंत सरकार ने जहां भरोसा और उपलब्धियां अर्जित की है, वहीं हेमन्त कोरी लफ्फाजी से ज्यादा कुछ करते नहीं दिखते|
बांग्लादेशी घुसपैठ असम के लिए भी बड़ी समस्या है, झारखण्ड की तरह ही| लेकिन इस मसले पर जहां हिमंत जहां पूरे कमिटमेंट के साथ संघर्ष करते दिखते हैं वहीं हेमन्त बयानबाजी और पर्दादारी से ज्यादा कुछ नहीं करते| बल्कि कुछ जनजातीय पुरोधा ही कहते हैं कि हेमन्त सरकार की नीतियों ने बांग्लादेशियों को घुसपैठ करने और झारखण्ड में आकर ज़र – जोरू – जमीन पर कब्जा करने का जोर दिया है, हौसला दिया है|
एक बानगी काफी है
झारखण्ड में, खासकर संथालपरगना इलाके में बांग्लादेशी न सिर्फ डेमोग्राफी बदल रहे हैं बल्कि अब उन्होंने शास्वत जनजातीय संस्कृति को भी विकृत करना शुरू कर दिया है|
दूसरी तरफ असम के मुख्यमंत्री हिमंत असम के पारम्परिक “बिहू” को “मिया बिहू” के प्रदूषण से बचाने की जद्दोजहद कर रहे हैं|
‘मिया बिहू’ को लोकप्रिय बनाने की कोशिश के आरोप में एक गायक अल्ताफ हुसैन को गिरफ्तार किया गया है। हिमंत ने कहा कि कोई भी असमिया अपने पारंपरिक बिहू गीतों को ‘बहुत अलग’ बनाने के किसी भी प्रयास को बर्दाश्त नहीं करेगा।
असम की हिमंत सरकार के मिशन बसुंधरा के तहत हजारों मूल निवासियों के लिए भूमि पट्टों ने उन्हें अपनी भूमि का अधिकार प्राप्त करने में सक्षम बनाया।
जबकि जल – जंगल – जमीन का महज नारा देनेवाले हेमन्त सरकार पर अक्सर ये आरोप लगते हैं कि उन्होंने जनजातीय समुदाय की जमीनें लूटी भी – लुटवाई भी|
विकास कार्यों में भी हिमंत के पास है बड़ी लीड
हिमंत बिस्वा सरमा सरकार ने कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए जिन्होंने राज्य के सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य को बदल दिया।
उल्फा के साथ समझौता असम के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर था और इससे शांति आई। उल्फा के परेश बरुआ गुट को छोड़कर बाकी सभी विद्रोही समूह मुख्यधारा में वापस आ गये।
पड़ोसी राज्यों के साथ लंबे समय से लंबित सीमा विवादों को हल करने के लिए उठाए गए कदमों और इस प्रक्रिया में कुछ के साथ हुए समझौतों से राज्य के सीमावर्ती क्षेत्रों के माहौल में सकारात्मक बदलाव आए।
इसके अलावा, नशीली दवाओं के खिलाफ युद्ध और बाल विवाह के खिलाफ सख्त रुख के कारण बेहतरी के लिए सामाजिक परिवर्तन हुए। दोनों बुराइयों पर सरकार की कार्रवाइयों से सकारात्मक बदलाव आया है और बड़ा सामाजिक प्रभाव पड़ा है।
असम में 27,000 करोड़ रुपये का आगामी सेमीकंडक्टर विनिर्माण संयंत्र औद्योगिक क्षेत्र में एक बड़ा मील का पत्थर है। नए मेडिकल कॉलेजों का निर्माण, ब्रह्मपुत्र पर पुल, फ्लाईओवर, नई सड़कें आदि वर्तमान सरकार द्वारा हासिल की गई अन्य उपलब्धियां हैं।
ये सभी पिछले कुछ वर्षों में सरकार द्वारा हासिल की गई प्रमुख उपलब्धियां हैं।
बतौर मुख्यमंत्री हिमंत ने असंख्य उपलब्धियों को रेखांकित किया, जिनमें शामिल हैं: –
- उन्नत सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी)
- व्यापार करने में आसानी का ऑन-ट्रैक कार्यान्वयन
- नागरिक केंद्रित सेवाएं – सड़क नेटवर्क और महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे को बढ़ावा देना
- सुरक्षित राज्य के लिए प्रभावी पुलिस व्यवस्था
- मिशन बसुंधरा 2.0
- कौशल विकास और उद्यमिता पर जोर – बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं
- शहरी विकास को बढ़ावा
- कृषि और किसान कल्याण को प्राथमिकता
- पर्यटन क्षेत्र का विकास
- पानी, बिजली और आवास तक पहुंच में वृद्धि
- एक सुरक्षित और स्थिर स्थिति सुनिश्चित करना
झारखण्ड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की ओर से बताया जाता है कि ‘सरकार आपके द्वार’ कार्यक्रम के दौरान अब तक 31 लाख से अधिक लोगों के बीच 3,500 करोड रुपए का लाभ पहुंचाया गया है|
हेमंत सरकार का दावा है कि उसने अपने कार्यकाल में 12,475 योजनाओं उद्घाटन और शिलान्यास किया है|
हेमन्त सरकार सर्वजन पेंशन योजना, अबुआ आवास योजना, सोना सोबरन धोती साड़ी योजना, सावित्रीबाई फुले किशोरी समृद्धि योजना, फूलों झानो आशीर्वाद जैसी योजनाओं को अपने 4 साल की उपलब्धियां में गिनवाती है|
हरा राशन कार्ड, बिरसा हरित ग्राम योजना, मरंग गोमके जयपाल सिंह मुंडा पारदेसिय छात्रवृत्ति योजना को भी झारखंड मुक्ति मोर्चा की गठबंधन सरकार अपनी अहम स्कीम्स बताती है|
इनके अलावा मुख्यमंत्री सारथी योजना, मुख्यमंत्री गाड़ी ग्राम योजना, बिरसा सिंचाई कूप योजना, गुरुजी स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड, मुख्यमंत्री रोजगार सृजन जैसी योजनाओं के सहारे हेमंत सरकार विधानसभा चुनाव में जनता के बीच जाने की तैयारी कर रही है|
लोग इन योजनाओं से कितना खुद को जोड़ते हैं, यह तो वक्त बताएगा| लेकिन इनमें से कोई एक योजना भी ऐसी नहीं जिसके सौ फीसदी सकारात्मक असर को राज्य की जनता स्वीकार करती हो और जिसमें भ्रष्टाचार के छींटे न हों|
तो अब, अगर झारखण्ड विधानसभा चुनाव में “हिमंत बनाम हेमन्त” का नैरेटिव सर चढ़कर बोल गया तो यह तय है कि हेमन्त सोरेन और उनके गठबंधन के सहयोगियों की मुश्किलें काफी बढ़ जायेंगी|
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